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दारुणक रोग-चिकित्सा ।
५६६ (२) जदबार खताईको गुलाबजलमें घिसकर लेप करनेसे कँखलाई जाती रहती है।
(३) चकचूनीकी पत्ती और अरण्डकी पत्ती-- इन दोनोंको समानसमान लेकर और पीसकर गरम कर लो। थोड़ा-सा नमक मिलाकर पीस लो और गरम करके बाँध दो । कँखलाई नष्ट हो जायगी।
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दारुणक रोग-चिकित्सा।
XXXX फ और वातके प्रकोपसे बालोंकी जगह कड़ी और रूखी मक हो जाती है और वहाँ खाज चलती है, इसको "दारुणक RAK रोग" कहते हैं। बोलचालकी जबान में इसे फिहाँसों या खोसी निकलना कहते हैं।
चिकित्सा। (१) ललाटकी शिराको स्निग्ध और स्विन्न करके, नश्तरसे छेदकर खून निकालो। फिर अवपीड़ नस्य देकर सिरकी मलामत निकालो और कोई तेल मलो, अथवा कोई लेप आदि करो।
नोट--जिसे शिरावेधन करने या फ़द खोलनेका पूरा ज्ञान और अभ्यास हो, जिसे नसोंका ज्ञान हो, वही इस कामको करे, नहीं तो लेने के देने पड़ेंगे। बिना शिरावेधन किये, कोरी दवाओंसे भी यह रोग आराम हो सकता है।
(२) प्रियालके बीज, मुलहटी, कूट, उड़द और सेंधानोनइनको पीसकर और शहदमें मिलाकर सिरपर लेप करो। __(३) चिरमिटी पीसकर लुगदी बना लो। फिर लुगदीसे चौगुना मीठा तेल और तेलसे चौगुना भाँगरेका रस लेकर सबको मिला लो
और आगपर पकाओ । तेल-मात्र रहनेपर उतारकर छान लो। इस तेलके लगानेसे खुजली, दारुणक रोग, हृद्रोग, कोढ़ और मस्तक-रोग नाश होते हैं।
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