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मस्से और तिलोंकी चिकित्सा । वात, पित्त और कफके योगसे, चमड़ेपर, जो काले तिलके जैसे दाग़ हो जाते हैं, उन्हें "तिलकालक" या "तिल" कहते हैं।
चमड़ेसे जरा ऊँचा काला या लाल-सा दारा जो चमड़ेपर पड़ जाता है, उसे "जतुमणि" या "लहसन" कहते हैं।
नोट - सामुद्रिक शास्त्रमें तिल, मस्से और लहसनके शुभाशुभ लक्षण लिखे हैं । पुरुषके दाहिने और स्त्रीके बायें अङ्गपर होनेसे ये शुभ और इसके विपरीत अशुभ समझे जाते हैं।
चिकित्सा। (१) अगर इनको नष्ट करना हो, तो इनको तेज़ छुरी या नस्तरसे छीलकर, इनको क्षार, तेज़ाब या आगपर तपाये लोहसे जला दो बस ये नष्ट हो जायँगे। पीछे कोई मरहम लगाकर घाव आराम कर लो।
(२) शरीरमें जितने मस्से हों, उतनी ही कालीमिर्च लेकर शनिवारको न्यौत दो । फिर रविवारके सवेरे ही उन्हें कपड़ेमें बाँधकर, राहमें छोड़ दो । मस्से नष्ट हो जायेंगे ।
(३) मोरकी बीट सिरकेमें मिलाकर, मस्सोंसर लगानेसे मस्से नष्ट हो जाते हैं।
(४) मस्सेको जंगली कण्डेसे खुजा लो और फिर उस जगह चूना और सज्जी पानीमें घोलकर मलो। तीन दिनमें मस्सा जाता रहेगा।
(५) धनिया पीसकर लगानेसे मस्से और तिल नष्ट हो जाते हैं ।
(६) चुकन्दरके पत्ते शहदमें मिलाकर लेप करनेसे मस्से नष्ट हो जाते हैं।
(७) खुरफेकी पत्ती मस्सोंपर मलनेसे मस्से नष्ट हो जाते हैं।
(८) सीपकी राख सिरकेमें मिलाकर मस्सोंपर लेप करनेसे मस्से नष्ट हो जाते हैं।
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