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तीसरा अध्याय ।
स्थावर विषोंकीसामान्य चिकित्सा।
वेगानुसार चिकित्सा। (१) पहले वेगमें -शीतल जल पिलाकर वमन या कय करानी चाहिये तथा शहद और धीके साथ अगद-विष-नाशक दवा-- पिलानी चाहिये, क्योंकि पिया हुआ विष वमन करानेसे तत्काल निकल जाता है।
. (२) दूसरे वेगमें -पहले वेगकी तरह वमन या कय कराकर, विरेचन या जुलाब भी दे सकते हैं।
नोट--चरककी रायमें, पहले वेगमें वमन करानी और दूसरे वेगमें जुलाब देना चाहिये । सुश्रुत कहते हैं, पहले और दूसरे--दोनों वेगोंमें वमन कराकर, विषको निकाल देना चाहिये, क्योंकि वह इस समय तक आमाशयमें ही रहता है । पर, अगर ज़रूरत समझी जाय, तो चिकित्सक इस वेगमें जुलाब भी दे सकता है । चरकका अभिप्राय यह है, कि विष सामान्यतया शरीरमें फैला हो या न फैला हो, दूसरे वेगमें जुलाब देकर उसे निकाल देना चाहिये । चरक मुनि इस मौकेपर एक बहुत ही ज़रूरी बातकी ओर ध्यान दिलाते हैं। वह कहते हैं:--
पीतं चमनै सद्योहरेद्विरेकैर्द्वितीयेतु । आदौ हृदयं रक्ष्यं तस्यावरण पिवेद्यथालाभम् ।।
पिया हुअा विष नमनसे तत्काल निकल जाता है, अतः शुरूमें किसी वमनकारी दवासे कय करा देनी चाहिये। विषके दूसरे वेग या दौरेमें, जुलाब देकर,
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