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चिकित्सा-चन्द्रोदय । तरह बड़े और छोटे दो कपाट होते हैं। इनको बड़े और छोटे भगोष्ट या भगके होंठ भी कहते हैं।
अगर हम अँगुलीसे दोनों भगोष्ठोंको हटावें, तो दरार या फाँकमें दो सूराख नजर आयेंगे। इनमेंसे एक सूराख्न बड़ा और दूसरा छोटा होता है । बड़ा सूराख योनिकी राह है । इसीको योनिद्वार या योनिका दरवाजा भी कहते हैं । मैथुनके समय पुरुषका लिङ्ग इसी छेदमें होकर भीतर जाता है । इसी में होकर, मासिक-धर्मके समय, रज बह-बहकर बाहर आता है और इसी राहसे बालक बाहर निकलता है। इस छेदसे कोई आधा इंच ऊपर दूसरा छेद होता है । यह मूत्रमार्गका छेद और उसका बाहरी द्वार है । पेशाब इसीमें होकर बाहर आता है।
जिन स्त्रियोंका पुरुषोंसे समागम नहीं होता, उनके योनि-द्वारपर चमड़ेका पतला पर्दा पड़ा रहता है। इस पर्दमें भी एक छेद होता है। इस छेदमें होकर रजोधर्मका रज या खून बाहर आया करता है । जब पहले-पहल मैथुन किया जाता है, तब लिङ्गके जोरसे यह पर्दा फट जाता है । उस समय स्त्रीको कुछ तकलीफ होती है और थोड़ा-सा खून भी निकलता है । किसी-किसीका यह पर्दा बहुत पतला और छेद चौड़ा होता है। इस दशामें मैथुन करनेपर भी चमड़ा नहीं फटता और लिङ्ग भीतर चला जाता है। जब तक यह पर्दा मौजूद रहता है और उसका छेद बड़ा नहीं होता, तब तक यह समझा जाता है, कि स्त्रीका पुरुषसे समागम नहीं हुआ। इस पर्देको योनिच्छद- योनिका ढकना कहते हैं ।
बड़े भगोष्ट ऊपर जाकर एक दूसरेसे मिल जाते हैं । जहाँ वे मिलते हैं, वह स्थान कुछ ऊँचा या उभरा-सा होता है । इसे “कामाद्रि" कहते हैं। जवानी आनेपर यहाँ बाल उग आते हैं।
कामाद्रिके नीचे और दोनों बड़े होठोंके बीचमें और पेशाबके
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