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नर-नारीकी जननेन्द्रियोंका वर्णन । सन्तान पैदा कर सकता है और न वह साँडके समान बलवान ही होता है। वही बछड़ा अण्ड रहनेसे साँड बन जाता है और खूब पराक्रम दिखाता है; अतः सब अङ्गोंके पके पहले, इन शुक्र-ग्रन्थियोंअण्डोंसे शुक्र बनानेका काम लेना, अपनी और औलादकी हानि करना है। इसलिये २५ सालसे पहले मैथुन द्वारा या और तरह वीर्य निकालना परम हानिकर है । इसीसे सुश्रुतने २४ वर्षके पुरुष और सोलह सालकी स्त्रीको विवाह करके गर्भाधान करनेकी आज्ञा दी है, पर आजकल तो १३।१४ सालका लड़का बहू के पास भेज दिया जाता है ! उसीका नतीजा है, कि हिन्दू क़ौम आज सबसे कमजोर और सबसे मार खानेवाली मशहूर है। KEERTAIMERARAMMEREAK
स्त्रीकी जननेन्द्रियोंका वर्णन। MAHARYANAWREVIATEME
नारीकी जननेन्द्रियाँ । जिस तरह मर्द के लिङ्ग और अण्डकोष होते हैं, उसी तरह स्त्रीके भग और उसके दूसरे हिस्से होते हैं। भग, भग-नासा, भगके होठ
और योनिद्वार ये बाहरसे दीखते हैं । वस्तिगह्वर या पेड़ की पोलमें डिम्बग्रन्थि, डिम्वप्रनाली, गर्भाशय और योनि-ये होते हैं । ये बाहरसे नहीं दीखते।
भग। भगके बीचों-बीच में एक दराज-सी होती है। उसके दोनों ओर चमड़ीके झोलसे बने हुए दो कपाट या किवाड़-से होते हैं । चमड़ीके नीचे वसा होनेकी वजहसे वे उभरे होते हैं। अगर ये दोनों कपाट हटाये जाते हैं, तो भीतर दो पतले-पतले कपाट और दीखते हैं। इस
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