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चिकित्सा-चन्द्रोदय । नीची रहती है यानी श्रादमी नीचेकी तरफ़ देखता है, बोला नहीं जाता और शरीर काँपता है; पर अगर इसके विपरीत चिह्न हों, जैसे शरीरके अङ्ग कड़े हों, नज़र ऊपर हो, स्वर क्षीण न हो और शरीर काँपता न हो, तो समझना होगा कि, पुरुष-सर्पने काटा है। .. नोट-इस तरहकी पहचान वही कर सकता है, जिसे समस्त लक्षण कण्ठान हो । वैद्यको ये सब बातें हर समय कण्ठमें रखनी चाहिये । समयपर पुस्तक काम नहीं देती । हमने सब तरहके साँपोंके काटेके लक्षण आदि, आगे, जंगम-विषचिकित्सामें खूब समझा-समझाकर लिखे हैं। .. (७) आगे लिखा है, कि साँपके चार बड़े दाँत होते हैं। दो दाँत दाहिनी ओर और दो बाई ओर होते हैं। दाहिनी तरफ़के नीचेके दाँतका रङ्ग लाल और ऊपरके दाँतका काला-सा होता है। जिस रङ्गके दाँतसे साँप काटता है, काटी हुई जगहका रङ्ग वैसा ही होता है। दाहिनी तरफ़के दाँतोंमें बाई तरफ़के दाँतोंसे विष जियादा होता है । बाई तरफ़के दाँतोंका रङ्ग चरकने लिखा नहीं है । बाई तरफ़के नीचेके दाँतमें जितना विष होता है, उससे बाई तरफ़के ऊपरके दाँतमें दूना विष होता है, दाहिनी तरफ़के नीचे के दाँतमें तिगुना और उसी ओरके ऊपरके दाँतमें चौगुना विष होता है । दाहिनी ओरके नीचे-ऊपरके दाँतोंमें, बाई तरफके दातोंसे विष अधिक होता है। दाहिनी ओरके दोनों दाँतोंमें भी, ऊपरके दाँतमें बहुत ही जियादा विष होता है और उस दाँतका रङ्ग भी श्याम या काला-सा होता है। अगर हम काटे हुए स्थानपर, साँपके ऊपरके दाहिने दाँतका चिह्न और रङ्ग देखें, तो समझ जायँगे, कि विष बहुत तेज़ है । अगर दाहिनी ओरके लाल दाँतका रङ्ग और चिह्न देखेंगे, तो विषको उससे कुछ कम समझेंगे। अगर चारों दाँत पूरे बैठे हुए देखेंगे तो भयानक दंश समझेंगे।
अगर काटा हुआ निशान ऊपरसे खूब साफ़ न हो, पर भीतरसे गहरा हो, गोल हो या लम्बा हो अथवा काटनेसे बैठ गया हो अथवा
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