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विष-चिकित्सामें याद रखने योग्य बातें।
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हुए तेलको निवाया करके सेक करो, अथवा विष-नाशक दवाओंकी लूपरीसे उपानह स्वेद करो । अथवा निवाया-निवाया गोबर काटे स्थानपर बाँधो और उसीसे उस जगहको स्वेदित करो ।
(५) इस बातको भी ध्यानमें रक्खो कि, विषके साथ काल और प्रकृतिकी तुल्यता होनेसे विषका वेग या ज़ोर बढ़ जाता है । जैसे,--दर्वीकर साँपका विष वातप्रधान होता है। अगर वह वातप्रकृतिवाले प्राणीको काटता है, तो "प्रकृति-तुल्यता" होती है, यानी विषकी और काटे जानेवालेकी प्रकृतियाँ मिल जाती हैं--आदमीका मिजाज बादीका होता है और विष भी बादीका ही होता है; तब विषका जोर बढ़ जाता है। अगर उस वात प्रकृतिवाले मनुष्यको दर्वीकर सर्प वर्षा-कालमें काटता है, तो विषका जोर और भी जियादा होता है, क्योंकि वर्षाकालमें वायुका कोप होता है । विष वातकोपकारक, वर्षाकाल वातकोपकारक और काटे जानेवालेकी प्रकृति वातकी--जहाँ यह तीनों मिल जाते हैं, वहाँ जीवनकी आशा कहाँ ? अगर काटनेवाला दर्वीकर या काला साँप जवान पट्टा हो, तो और भी ग़ज़ब समझिये; क्योंकि जवान काला साँप (दर्वीकर), बूढ़ा मण्डली साँप और प्रौढ़ अवस्थाका राजिल साँप आशीविष-सदृश होते हैं। इधर ये काटते हैं और उधर आदमी खतम होता है।
(६) अगर काटनेवाला सर्पको न देख सका हो या घबराहटमें पहचान न सका हो, तो वैद्यको विषके लक्षण देखकर, कैसे साँपने काटा है, इसका निर्णय करना चाहिये । जैसे, दर्वीकर साँप काटेगा तो काटा हुआ स्थान सूक्ष्म और काला होगा और वहाँसे खून न निकलेगा और वह जगह कछुए के जैसी होगी तथा वायुके विकार अधिक होंगे। अगर मण्डलीने काटा होगा, तो काटा हुआ स्थान स्थूल होगा, सूजन होगी, रङ्ग लाल-पीला होगा और काटी हुई जगहसे खून निकला होगा तथा रक्त-पित्तके और लक्षण होंगे। - स्त्री-सर्प-नागनके काटनेसे आदमीके अङ्ग नर्म रहते हैं, दृष्टि
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