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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा--प्रसूतिका-चिकित्सा । ५१७ (३) कफजन्य । (४) सन्निपात-जन्य ।
(५) आगन्तुक | नोट-चोट लगने या शल्यसे जो स्तन-रोग होते हैं, वह भागन्तुक कहलाते हैं । रुधिरके कोपसे स्तन रोग नहीं होते, यह स्वभावकी बात है।
हिकमतके ग्रन्थों में लिखा है- खून चलता-चलता स्तनोंकी छोटी नसोंमें गरमी, सर्दी या और कारणोंसे रुककर सूजन पैदा कर देता है। उस समय पीड़ा होती और ज्वर चढ़ पाता है । इस दशामें बड़ी तकलीफ़ होती है । बहुत बार बालकके सिरकी चोट लगनेसे भी नसोंका मुंह बन्द होकर पीड़ा खड़ी हो जाती है।
चिकित्सा विधि । अगर स्तनोंमें सूजन हो, तो वैद्य विद्रधि रोगके अनुसार इलाज करे; परन्तु सेक आदि स्वेदन-कर्म कभी न करे । स्तनरोगमें पित्तनाशक शीतल पदार्थ प्रयोग करे और जौंक लगाकर खराब खून निकाले ।
स्तनपीड़ा नाशक नुसखे । (१) इन्द्रायणकी जड़ पानी या बैलके मूत्रमें घिसकर लेप करनेसे स्तनोंकी पीड़ा और सूजन तुरन्त मिट जाती है।
(२) अगर स्तनों में खुजली, फोड़ा, गाँठ या सूजन वगैरः हो जाय, तो शीतल दवाओंका लेप करो। १०८ बार धोये हुये मक्खनमें मुर्दासंग और सिन्दूर पीस-छान कर मिला दो और उसे फिर २१ बार धोओ । इसके बाद उसे स्तनों पर लगादो । इस लेपसे फोड़े-फुन्सी और घाव आदि सब आराम हो जाते हैं । परीक्षित है।
(३) जौंक लगवाकर खराब खून निकाल देनेसे स्तन-पीड़ामें जल्दी लाभ होता है। .. (४) हल्दी और घीग्वारकी जड़ पीसकर स्तन पर लगानेसे स्तनरोग नाश हो जाते हैं । किसीने कहा है:
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