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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रसूतिका-चिकित्सा। ५११ ३ तोले, लोह-भस्म ५ तोले, शङ्ख-भस्म ८ तोले, पारने कण्डोंकी राख १६ तोले और शुद्ध मीठा विष एक तोले-इन सबको एकत्र घोट लो। इसमेंसे २ रत्ती रस शुद्ध गूगल, गिलोय, नागरमोथा और त्रिफलेके साथ मिलाकर देनेसे प्रसूत रोग और धनुर्वात रोग नाश हो जाते हैं। अदरखके रसके साथ देनेसे सन्निपात और बवासीर रोग नाश हो जाते हैं। भिन्न-भिन्न अनुपानोंके साथ यह रस सब तरहके अतिसार
और संग्रहणीको नाश करता है । यह रस स्वयं जगत्माता पार्वतीने कहा है।
(७) वृहत् सूतिका विनोद रस । सोंठ १ तोले, गोलमिर्च २ तोले, पीपर ३ तोले, सेंधानोन ६ माशे, जावित्री २ तोले और शुद्ध तूतिया २ तोले-इन सबको मिलाकर निर्गुण्डीके रसमें ३ घण्टे तक खरल करके रख लो । इस रसके मात्रासे सेवन करनेसे तरह-तरहके सूतिका रोग नाश हो जाते हैं ।
(८) सूतिका गजकेसरी रस । शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, शुद्ध अभ्रक भस्म, सोनामक्खीकी भस्म,. त्रिकुटा और शुद्ध मीठा विष-सबको बराबर-बराबर लेकर, खरल करके रख लो । मात्रा ४ रत्तीकी है । इसको उचित अनुपानके साथ सेवन करनेसे सूतिका-जन्य ग्रहणी, मन्दाग्नि, अतिसार, खाँसी और श्वास आराम होते हैं।
(8) हेमसुन्दर तैल । धतूरेके गीले फल पीसकर, चौगुने कड़वे तेलमें डालकर पकाओ। कोई २५ मिनट में “हेमसुन्दर तैल" बन जायगा । यह तैल मालिश करनेसे दुष्ट पसीने आने और सृतिका रोगोंको नाश करता है।
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