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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-प्रसूतिका-चिकित्सा। ५०५ क्षीणको, जिसके गर्भमें चोट लगी हो या अत्यन्त चोट लगी हो, टूटे हुए, थके हुए, आक्षेपक आदि वात-व्याधियोंवालोंको तथा फोतोंके रोगवालोंको परम लाभदायक है । खाँसी, श्वास, हिचकी और गुल्म, इसके सेवन करनेसे नाश हो जाते तथा धातु पुष्ट और स्थिरयौवन होता है । यह राजाओंके योग्य है । और तैल। तिलोंको खिरेंटीके काढ़ेकी सात भावनायें दो और फिर कोल्हू में उनका तेल निकालकर-सौ बार उसे खिरेंटीके काढ़ेमें पकाओ। इस तेलको निर्वात स्थानमें, बलानुसार, नित्य पीने और जब तेल पच जाय तब चिकने भातको दूधके साथ खानेसे बड़ा लाभ होता है । इस तरह १६ सेर तेल पीने और यथोक्त भोजन करनेसे १ सालमें खूब रूप और बल हो जाता है। सब दोष नाश होकर १०० वर्षकी आयु हो जाती है। सोलह-सोलह सेर तेल बढ़नेसे सौ-सौ वर्षकी उम्र बढ़ती है। प्रसूतिका-चिकित्सा। सूतिका रोगके निदान । HEAK त्यन्त वातकारक स्थानके सेवन करने आदिसे, अयोग्य अ आचरणसे, दोषोंको कुपित करनेवाले आचरणसे, EX विषम भोजन और अजीर्णसे प्रसूता या जच्चाको जो रोग होते हैं, उन्हें "सूतिका-रोग" कहते हैं। वे कष्टसाध्य हो जाते हैं। ६४ For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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