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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ - चिकित्सा-चन्द्रोदय । वात-नाशक द्रव्योंसे सिद्ध किया हुआ दूध दस दिन तक पिलाओ। फिर दस दिन यथोचित मांसरस दो। ___जब कोई उपद्रव न रहे, स्त्री स्वस्थ अवस्थाकी तरह बलवती और रूपवती हो जाय और गर्भको निकाले हुए चार महीने बीत जायँ, तब यथेष्ट आहार-विहार करे। प्रसूताको मालिशके लिये बला तैल । "सुश्रुत" में लिखा है योनिके संतर्पण, शरीरपर मलने, पीने और वस्ति-कर्म तथा भोजनमें वायु-नाशक “बलातैल" प्रसूता स्त्रीको सेवन कराओबला (खिरेंटी) की जड़का काढ़ा ८ भाग दशमूलका काढ़ा जौका काढ़ा बेरका काढ़ा कुलथीका काढ़ा दूध तिलका तेल इन सबको मिलाकर पकाओ । पकते समय मधुर गण (काकोल्यादिक ) और सैंधानोन मिला दो। ___ अगर, राल, सरल निर्यास, देवदारु, मँजीठ, चन्दन, कूट, इलायची, तगर, मेदा, जटामासी, शैलेय (शिलारस ), पत्रज, तगर, सारिवा, बच, शतावरी, असगन्ध, शतपुष्प--सोवा और साँठी--इन सबको तेलसे चौथाई लेकर पीस लो और पकते समय डाल दो। जब पककर तेल-मात्र रह जाय, उतारकर छान लो। फिर इसे सोने, चाँदी या चिकने मिट्टीके बासनमें रख दो और मुंह बाँध दो। __ यह तेल समस्त वात-व्याधि और प्रसूताके समस्त रोग नाशक है । जो बाँझ गर्भवती होना चाहे उसको-क्षीणवीर्य पुरुषको, वायुसे Is Isis is a For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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