________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
स्त्री रोगोंकी चिकित्सा-गर्भ गिरानेके उपाय । ४८५ ईश्वरसे डरनेवालोंको न तो व्यभिचार करना चाहिये और न गर्भ गिराना चाहिये । एक पाप तो व्यभिचार है और दूसरा गर्भ गिराना । व्यभिचारसे गर्भ गिराना हजारों-लाखों गुना बढ़कर पाप है, क्योंकि इससे एक निर्दोष प्राणीकी हत्या होती है । अगर किसी तरह व्यभिचार हो ही जाय, तो भी गर्भको तो भूलकर भी न गिराना चाहिये । जरा-सी लोक-लज्जाके लिये इतना बड़ा पाप कमाना महामूर्खता है । दुनिया निन्दा करेगी, बुरा कहेगी, पर ईश्वरके सामने तो अपराधी न होना पड़ेगा।
हम हिन्दुओं में पाँच-पाँच या सात-सात और ज़ियादा-से-ज़ियादा नौ-दश बरसकी उम्र में कन्याओंकी शादी कर दी जाती है। इससे करोड़ों लड़कियाँ छोटी उम्रमें ही विधवा हो जाती हैं। वे जानती भी नहीं, कि पुरुष-सुख क्या होता है । जब उनको जवानीका जोश आता है, कामदेव जोर करता है, तब वे व्यभिचार करने लगती हैं। पुरुषसंग करनेसे गर्भ रह जाता है। उस दशामें वह गर्भ गिरानेमें ही अपनी भलाई समझती हैं। अनेक स्त्री-पुरुष पकड़े जाकर सजा पाते हैं, अनेक दे-लेकर बच जाते हैं और अनेकोंका पुलिसको पता ही नहीं लगता। हमारी रायमें, अगर विधवाओंका पुनर्विवाह कर दिया जाय, तो यह हत्याएँ तो न हों।
आर्यसमाजी विधवा-विवाहपर जोर देते हैं, तो सनातनी हिन्दू उनकी मसखरी करते और विधवा-विवाहको घोर पाप बतलाते हैं । पर उन्हें यह नहीं सूझता कि अगर विधवा-विवाह पाप है, तो भ्रणहत्या कितना बड़ा पाप है । भ्रूण-हत्या और व्यभिचार उन्हें पसन्द है, पर विधवा-विवाह पसन्द नहीं !! जो स्त्रियाँ विधवा-विवाहके नामसे कानोंपर उँगली धरती हैं, इसका नाम लेना भी पाप समझती हैं, वे ही घोर व्यभिचार करती हैं। ऐसी घटनाएँ हमने आँखोंसे देखी हैं। हमारी ५० सालकी उम्रमें, हमने इस बातकी बारीकीसे जाँच की,
For Private and Personal Use Only