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चिकित्सा-चन्द्रोदय । (३) "तिब्बे अकबरी” और “इलाजुल गुर्बा' में लिखा है कि अठारह माशे अमलताशके छिलकोंका काढ़ा औटाकर स्त्रीको पिला देनेसे बच्चा सुखसे हो जाता है । परीक्षित है।
नोट--कोई-कोई श्रमलताशके छिलकोंके काढ़ेमें "शर्बत बनफशा या चनोंका पानी" भी मिलाते हैं। हमने इन दोनोंके बिना मिलाये केवल अमलताशके छिलकोंके काढ़ेसे झिल्ली या जेर और बच्चा अासानीसे निकल जाते देखे हैं ।
(४) स्त्रीकी योनिमें घोड़ेके सुमकी धूनी देनेसे बच्चा सुखसे हो जाता है। ___ (५) योनिके नीचे काले या दूसरे प्रकारके साँपोंकी काँचलीकी धूनी देनेसे बालक और जेर-नाल आसानीसे निकल आते हैं। हकीम अकबर अली साहब लिखते हैं, कि यह हमारा परीक्षा किया हुआ उपाय है। इससे बच्चा वगैरः निश्चय ही फौरन निकल आते हैं, पर इस उपायसे एकाएकी काम लेना मुनासिब नहीं, क्योंकि इसके जहरसे बहुधा बालक मर जाते हैं । हमारे शास्त्रोंमें भी लिखा है
कटुतुम्ब्यहिनिमो ककृतवेधनसर्पपैः ।
कटुतैलान्वितैयों नेधूमः पातयतेऽपराम् ।। कड़वी तूम्बी, साँपकी काँचली, कड़वी तोरई और सरसों-इन सबको कड़वे तेलमें मिलाकर,--योनिमें इनकी धूनी देनेसे अपरा या जेर गिर जाती है। __हमारी रायमें जब बच्चा पेटमें मर गया हो, उसे काटकर निकालनेकी नौबत आ जावे, उस समय साँपकी काँचलीकी धूनी देना अच्छा है । क्योंकि इससे बच्चा जननेवालीको तो किसी तरहकी हानि होती ही नहीं । अथवा बच्चा जीता-जागता निकल आवे, पर जेर या अपरा न निकले, तब इसकी धूनी देनी चाहिये। हाँ, इसमें शक नहीं कि, साँपकी काँचली जेर या मरे-जीते बच्चे को निकालने में है अकसीर । "तिब्बे अकबरी” में, जहाँ मरे हुए बच्चेको पेटसे निकालनेका
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