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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-गर्भिणी-चिकित्सा ।
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कड़ापन और गति मालूम होती है । ऐसा जाना पड़ता है, मानों पेटमें बच्चा हो । अगर हाथसे दबाते हैं, तो वह सख्ती दाहिने-बायें हो जाती है।
इस रोगके लक्षण बेढंगे होते हैं । कभी तो यह किसी भी इलाजसे नहीं जाता और उम्र-भर रहा पाता है और कभी जलोदर या जलन्धर का रूप धारण कर लेता है। कभी बच्चा जननेके समयका-सा दर्द उठता है और एक मांसका टुकड़ा तर पदार्थ और मैलेके साथ निकल पड़ता है अथवा बहुत-सी हवा निकल पड़ती है या कुछ भी नहीं निकलता ।
अनेक बार झूठे गर्भका मवाद सड़ जाता है और अनेक बार उस मवादमें जान पड़ जाती है और वह जानवरकी-सी सूरतमें तब्दील हो जाता है । अखबारोंमें लिखा देखते हैं, फलाँ औरतके कछुएकी-सी शकलका बच्चा पैदा हुआ । कई घण्टों तक जीता या हिलता-जुलता रहा । एक बार एक स्त्रीने मुर्गे की सूरतका बच्चा जना । ऐसे-ऐसे उदाहरण बहुत मिलते हैं।
सच्चे और झूठे गर्भकी पहचान । अगर रोग होता है, तो पेट बड़ा होता है और हाथ-पाँव सुस्त रहते हैं, पर पेटकी सख्तीकी गति बालककी-सी नहीं होती। पेटपर हाथ रखने या दबानेसे वह इधर-उधर हो जाती है; परन्तु जो अपने-आप हिलता है वह और तरहका होता है । बच्चा समयपर हो जाता है, पर यह रोग चार-चार बरस तक रहता है
और किसी-किसीको उम्र-भर । इलाजमें देर होनेसे यह जलन्धर हो जाता है । ___ इसके होनेके ये कारण हैं:
(१) गर्भाशयमें कड़ी सूजन हो जानेसे, रज निकलना बन्द हो जाता है और रजके बन्द हो जाने से यह रोग होता है। (२) गर्भाशयके परतोंमें गाढ़ी हवा रुक जाती है, उसके न निकलने से पेट फूल जाता है । इस दशामें जलन्धरके लक्षण दीखते हैं।
प्रसवका समय । ____ गर्भिणी नवें, दसवें, ग्यारहवें अथवा बारहवें महीने में बच्चा जनती हैं। अगर कोई विकार होता है, तो बारहवें महीनेके बाद भी बच्चा होता है। वाग्भट्टमें लिखा है:
'तस्मिंस्त्वेकाहयातेऽपि कालः सूतेरतः परम् । वर्षाद्विकारकारी स्यात्कुक्षौ वातेन धारितः॥
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