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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-गर्भिणी-चिकित्सा । ४६५ (१६) कसेरू, सिंघाड़े, मद्माख, कमल, मुगवन और मुलेठीइनको पीस-छान और मिश्री मिलाकर दूध के साथ पीनेसे गर्भस्राव आदि उपद्रव नाश हो जाते हैं । इस दवापर दूध-भातके सिवा और कुछ न खाना चाहिये।
(१७ ) कसेरू, सिंघाड़े, जीवनीयगणकी दवाएँ, कमल, कमोदिनी, अरण्डी और शतावर--इनको दूधमें औटाकर और मिश्री मिलाकर पीनेसे गर्भ गिरता-गिरता ठहर जाता और पीड़ा नष्ट हो जाती है।
(१८) बिदारीकन्द, अनारके पत्ते, कच्ची हल्दी, त्रिफला, सिंघाड़ेके पत्ते, जाती फूल, शतावर, नील कमल और कमल-इन आठोंको दो-दो तोले लेकर सिलपर पीसकर लुगदी बना लो । फिर तेलकी विधिसे तेल पकाकर रख लो । इस तेलकी मालिश करनेसे गर्भशूल, गर्भस्राव आदि नष्ट हो जाते और गिरता-गिरता गर्भ रह जाता है। इस तेलका नाम "गर्भविलास तैल" है । परीक्षित है।
(१६) कबूतरकी बीट शालि चाँवलोंके जलके साथ पीनेसे गर्भस्राव या गर्भपातके उपद्रव दूर हो जाते हैं।
(२०) शहद और बकरीके दूधमें कुम्हारके हाथकी मिट्टी मिलाकर खानेसे गिरता हुआ गर्भ ठहर जाता है। गर्मिणीकी महीने-महीनेकी चिकित्सा ।
पहला महीना । पहले महीने में-मुलेठी, सागौनके बीज, असगन्ध और देवदारु--इनमेंसे जो-जो मिलें; उन सबका एक तोला कल्क दूधमें घोलकर गर्भिणीको पिलाओ।
दूसरा महीना । दूसरे महीनेमें-अश्मन्तक, काले तिल, मँजीठ और शतावरइनमेंसे जो मिलें, उनका एक तोले कल्क दूधमें घोलकर गर्भिणीको पिलाओ।
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