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चिकित्सा-चन्द्रोदय ।
नोट--(१) इसी हिसाबसे चाहे जितना घी बना लो, इस घीको दो-चार महीने खाकर, शुद्ध रज और योनिवाली स्त्रीसे अगर पुरुष मैथुन करे, तो निश्चय ही गर्भ रहे और महा बलवान पुत्र हो। यह घी आज़मूदा है। "बंगसेन में लिखा है:
वृद्धदारुकमूलेन घृतंपक्वं पयोऽन्वितम् ।
एतद्देष्यतमं सर्पिः पुत्रकामः पिबेन्नरः ॥ अर्थ वही है, जो ऊपर लिखा है। इसमें साफ़ "पिबेन्नरः" पद है, फिर न जाने क्यों बंगसेनके अनुवादकने लिखा है- "पुत्रकी इच्छा करनेवाली स्त्री पान करे।" - नोट-(२) विधायरेको हिन्दीमें विधारा और काला विधारा कहते हैं। संस्कृतमें वृद्धदारू, जीर्णदारू और फंजी श्रादि कहते हैं । बंगलामें वितारक, बीजतारक और विद्धडक कहते हैं। मरहटीमें श्वेत वरधारा और गुजरातीमें बरधारो कहते हैं । विधारा दो तरहका होता है:--
(१) वृद्धदारू और ( २) जीर्णदारू । जीर्ण दारूको फंजी भी कहते हैं । विधारा समुद्र-शोष-सा जान पड़ता है, क्योंकि समुद्र-शोष और विधारेके फूल, पत्त, बेल आदिमें कुछ भी फर्क नहीं दीखता। कितने ही वैद्य तो विधारे और समुद्र-शोषको एक ही मानते हैं। कोई-कोई कहते हैं, समुद्र-शोष और समुद्रफूल-ये दोनों विधारेके ही भेद हैं। . ..
कुमारकल्पद्रुम घृत ।। . पहले बकरेका मांस तीस सेर और दशमूलकी दशों दवाएँ तीन सेर-इन दोनोंको सवा मन पानी में डालकर औटाओ। जब चौथाई यानी १२॥ सेर पानी रह जाय, उतारकर छान लो और मांस वगैराको फैंक दो। ___ गायका दूध चार सेर, शतावरका रस चार सेर और गायका घी दो सेर भी तैयार रखो। . . - कूट, शठी, मेदा, महामेदा, जीवक, ऋषभक, प्रियंगूफूल, त्रिफला, देवदारु, तेजपात, इलायची, शतावर, गंभारीफल, मुलेठी, क्षीर-काकोली, मोथा, नीलकमल, जीवन्ती, लाल चन्दन, काकोली, अनन्तमूल, श्यामलता, सफ़ेद बरियारेकी जड़, सरफोंकेकी जड़, कोहड़ा, बिदारीकन्द,
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