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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-बाँझका इलाज। ४५१ निश्चय ही बाँझके रूपवान, बलवान और आयुष्मान -पुत्र हो । परीक्षित है।
शतावर शतावरका रस १६ सेर और बछड़ेवाली गायका दूध १६ सेर तैयार कर लो।
फिर मेदा, मँजीठ, मुलहटी, कूट, त्रिफला, खिरेंटी, सफ़ेद बिलाईकन्द, काकोली, क्षीर काकोली, असगन्ध, अजवायन, हल्दी, दारुहल्दी, हींग, कुटकी, नीला कमल, दाख, सफ़ेद चन्दन और लाल चन्दन-इन उन्नीस दवाओंको दो-दो तोले लेकर और सिलपर पीसकर लुगदी बना लो। ___ फिर बछड़ेवाली गायका घी चार सेर, लुगदी, शतावरका रस
और दूध सबको चूल्हेपर चढ़ाकर, मन्दाग्निसे पका लो। जब दूध वगैरः जलकर घी-मात्र रह जाय, उतारकर छान लो। - रोगनाश-इस घीके पीनेसे स्त्रियोंके योनि-रोग, उन्माद-हिस्टिरिया एवं बन्ध्यापन-सब नाश हो जाते हैं। इन रोगोंपर यह घी रामवाण है।
नोट-यह-का-यही नुसखा हम पहले लिख आये हैं, सिर्फ बनाने में थोड़ा भेद है। हमने इस तरह बनाकर और भी अधिक चमत्कार देखा है, इसीसे फिर पिसेको पीसा है।
. वृष्यतम घृत। विधायरेकी जड़ एक छटाँक लाकर, सिलपर पानीके साथ पीसकर, लुगदी बना लो । फिर एक पाव गायका घी और एक सेर गायका दूध-इन तीनोंको कलईदार बर्तनमें रख, मन्दाग्निसे घी पका लो। यह घी अत्यन्त पुष्टिकारक, बलवर्द्धक और वीर्योत्पादक है। इस घीको पुत्रकामी पुरुषको अवश्य पीना चाहिये । परीक्षित है।
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