________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विष-वर्णन । ...
समझ-समझकर याद कर लें। इनकी उत्पत्ति, इनके लक्षण और इनके गुणकर्म श्रादि याद होनेसे ही आपको "विष-चिकित्सा" में सफलता मिलेगी। अगर कोई शख्स हमारी लिखी “विष-चिकित्सा" को ही अच्छी तरह याद कर ले और इसका अभ्यास करे, तो मनमाना यश और धन उपार्जन कर सके। इसके लिये और ग्रन्थ देखनेकी दरकार न होगी।
स्थावर विषके कार्य । उधर हम जङ्गम विषके काम लिख आये हैं, अब स्थावर विषके काम लिखते हैं। ज्वर, हिचकी, दन्त-हर्ष, गलग्रह, झाग आना, अरुचि, श्वास और मूर्छा स्थावर विषके कार्य या नतीजे हैं। यानी जो आदमी स्थावर विष खाता-पीता है, उसे ऊपर लिखे ज्वर आदि रोग होते हैं।
स्थावर विषके सात वेग । स्थावर और जङ्गम दोनों तरहके विषोंमें सात वेग या दौरे होते हैं। प्रत्येक वेगमें विष भिन्न-भिन्न प्रकारके काम करते हैं, इससे प्रत्येक वेगकी चिकित्सा भी अलग-अलग होती है। जङ्गम-विष या सर्प-विष प्रभृतिके वेग और उनकी चिकित्सा आगे लिखी है। यहाँ हम “सुश्रुत" से स्थावर विषके सात वेग और अगले अध्यायमें प्रत्येक वेगकी चिकित्सा लिखते हैं:
(१) पहले वेगमें, -जीभ काली और कड़ी हो जाती है तथा मूर्छा-बेहोशी होती और श्वास चलता है। - (२) दूसरे वेगमें, शरीर कॉपता है, पसीने आते हैं, दाह या जलन होती और खुजली चलती है । - (३) तीसरे वेगमें,-तालूमें खुश्की होती है, आमाशयमें दारुण शूल या दर्द होता है तथा दोनों आँखोंका रंग और-का-और हो जाता है । वे हरी-हरी और सूजी-सी हो जाती हैं ।
नोट—याद रक्खो, इन तीनों वेगोंके समय खाया-पिया हुआ विष “श्रामा शय"में रहता है। इस तीसरे वेगके बाद, विष 'पक्वाशय' में पहुँच जाता है।
For Private and Personal Use Only