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चिकित्सा-चन्द्रोदय। O - - --------
अमीरी नुसरखे। -
------- बृहत कल्याण घृत । नागरमोथा, कूट, हल्दी, दारुहल्दी, पीपल, कुटकी, काकोली, क्षीरकाकोली, बायबिडङ्ग, त्रिफला, बच, मेदा, रास्ना, असगन्ध, इन्द्रायण, फूलप्रियंगू, दोनों सारिवा, शतावर, दन्ती, मुलेठी, कमल, अजमोद, महामेदा, सफेद चन्दन, लाल चन्दन, चमेलीके फूल, बंसलोचन, मिश्री, हींग और कायफल--इन सबको दो-दो तोले या बराबर-बराबर लेकर, पीस-कूटकर छान लो । फिर इन्हें सिलपर पानीके साथ पीसकर लुगदी या कल्क बना लो। फिर कल्कसे चौगुना दूध लेकर इस कल्क और दूधके साथ घी पकाओ। किन्तु इस घीको पुष्यनक्षत्रमें, ताम्बेके कलईदार बासनमें, मन्दाग्निसे पकाओ । जब धी पक जाय, निकालकर रख लो। दवाएँ अगर दो-दो तोले लोगे, तो सब मिलाकर तीन पाव होंगी। कुटने-पिसने और लुगदी बननेपर भी तीन पाव ही रहेंगी। इस दशामें घी तीन सेर लेना और गायका दूध बारह सेर लेना। सबको चूल्हेपर चढ़ाकर मन्दाग्निसे पकाना । जब दूध जलकर घी-मात्र रह जाय, उतारकर रख देना । खूब शीतल होनेपर छानकर बासनमें भर लेना।
रोगनाश- इस घीके उचित मात्राके साथ सेवन करनेसे पुरुष स्त्रियोंमें बैलके समान आचरण करता है। जिस स्त्रीके कन्या-हीकन्या होती हों, जिसकी सन्तान होकर मर जाती हों, जिसके गर्भ ही न रहता हो, जिसके गर्भ रहकर नष्ट हो जाता हो या जिसके पेटसे मरी सन्तान होती हो, उन सबको यह "वृहत कल्याण घृत" परमोप
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