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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा-बाँझका इलाज। ४४३ रोग-नाश-इसे “सोमघृत" कहते हैं । इसके सेवन करनेसे निरोग पुत्र होता है । बाँझ भी शूर और पण्डित पुत्र जनती है । इसके पीनेसे शुक्र-दोष और योनि-दोष दोनों नष्ट हो जाते हैं। सात दिन ही सेवन करनेसे वाणीकी जड़ता और D गापन-मिनमिनापन नाश हो जाते हैं
और सेवन करनेवाला एक बार सुनी बातको याद रखनेवाला श्रुतिधर हो जाता है । जिस घरमें यह सोमघृत रहता है, वहाँ अग्नि और वजू आदिका भय नहीं होता और वहाँ कोई अल्पायु होकर नहीं मरता ।
(५८) सरसों, बच, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, साँठी, क्षीर काकोली, कूट, मुलहठी, कुटकी, त्रिफला, दोनों अनन्तमूल, हल्दी, पाठा, भाँगरा, देवदारु, सूरज बेल, मँजीठ, दाख, फालसा, कभारी, निशोथ, अड़ सेके फूल
और गेरू--इन सबको दो-दो तोले लेकर, साढ़े बारह सेर पानीमें काढ़ा बना लो । चौथाई पानी रहनेपर उतार लो । फिर इस काढ़े ६४ तोले घी मिलाकर मन्दाग्निसे पकाओ । जब घी-मात्र रह जाय, उतार लो। तैयार होते ही 'ओं नमो महाविनायकायामृतं रक्षरक्ष मम फलसिद्धिं देहि रुद्रवचनेन स्वाहा"इसमंत्र द्वारा सात दूबसे इस घीको अभिमंत्रित कर लो। .. सेवन-विधि-दूसरे महीनेसे इसे गर्भवती सेवन करे और छठे महीनेसे आगे सेवन न करे । इसके सेवन करनेसे शूरवीर और पण्डित पुत्र पैदा होता है। सात रात्रि सेवन करनेसे मनुष्य दूसरेकी सुनी हुई बातको याद रखनेवाला हो जाता है । जहाँ यह दवा रहती है, वहाँ बालक नहीं मरता। इसके प्रतापसे बाँझ भी निरोग पुत्र जनती है तथा योनि-रोगसे पीड़ित नारी और वीर्यदोषसे दुष्ट हुए पुरुष शुद्ध हो जाते हैं। __(५६) अगर रजस्वला नारी बड़की जटा गायके घीमें मिलाकर पीती है, तो गर्भ रह जाता है। मगर नवीना नारीको जवान पुरुषके साथ संभोग करना चाहिये । कहा है
ऋतौरुद्रजटांनीत्वा गोपतेन या च पिबेत् । सा नारी लभते गर्भमेतद्धस्तिकवेर्मतम् ॥
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