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चिकित्सा-चन्द्रोदय । (२) कदाचित मरोड़ी हो और मल-मूत्र बन्द हो जायें।
नोट-अधिक कूदने-फाँदने, दौड़ने, भारी बोझ उठाने या खींचने प्रभूति कारणोंसे यह रोग होता है । इसके टेढ़े होनेके दो कारण हैं।-(१) रगोंका भर जाना और उनमें खिंचाव होना, (२) बिना मवादके रुकावट और सुकड़न होना।
चिकित्सा-- (१) अगर रगोंके भर जाने और खिंचावसे गर्भाशय टेढ़ा हुआ हो,
तो पाँवकी मोटी नसकी फस्द खोलो। (२) अगर बिना मवादके केवल रुकाव और सूजनसे टेढ़ापन हुआ
हो, तो अंजीर, बाबूना, मेथी, कड़के बीजोंकी मींगी और अलसीके बीज-इन सबके काढ़ेमें तिलीका तेल मिलाकर हुकना करो।
बाबूनेका तेल, बतख और मुर्गीकी चरबी मलो।। (३) शीतल हम्माम और बफारे, गर्भाशयके सिमटने या रुक जानेमें
लाभदायक हैं। (४) अगर गर्भाशयपर तरी गिरनेसे टेढ़ापन हुआ हो, तो “यारज" दो। (५) जब कारण दूर हो जाय; केवल टेढ़ापन और झुकाव बाकी रह
जाय, तब दाई उसे अँगुलीसे सीधा कर दे, जिससे गर्भाशय जननेन्द्रियके सामने हो जाय । अँगुली लगानेसे पहले दाईको तेल, चर्बी, या मोम प्रभृति अँगुलीमें लगा लेना चाहिये, जिससे गर्भाशयको तकलीफ़ न हो और वह अपनी जगहपर आ जाय ।
"दस्तूरुल इलाज" में लिखा है, मवाद निकल जानेके बाद चतुर दाई तिलीके तेलमें उँगली चिकनी करके हाथसे गर्भाशयको सीधा करे और उसकी रगोंको सींचे। इस तरह रोज़ कुछ दिन करनेसे गर्भाशयका मुँह योनिके सामने हो जायगा । उस दशामें मैथुन करनेसे गर्भ रह जायगा।
तेरहवाँ भेद ।। (१) स्त्री वीर्य छुटनेके बाद शीघ्र ही उठ खड़ी हो तो गर्भ नहीं रहता। (२) व्रत-उपवास करने या भूखी रहनेसे बालक क्षीण हो जाता है ।
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