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चिकित्सा-चन्द्रोदय। (२) घीया और नीलोफरका तेल तथा बतन और मुर्गीकी चर्बी मसाने ___ और योनिपर मलो। (३) पाढ़का गूदा, गायका घी और स्त्रीका दूध, इन तीनोंको मिलाकर
रख लो । फिर इसमें कपड़ा सानकर, कपड़ेको योनिमें रखवाओ।
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चौथा भेद ।
कारण-गर्भाशयमें तरी। नतीजा-गर्भाशयकी शक्ति नष्ट हो जाती है। इससे उसमें वीर्य नहीं
ठहर सकता।
लक्षण-- (१) सदा गर्भाशयसे तरी बहा करे । (२) गर्भ ठहरे तो क्षीण हो जाय और बहुधा तीन माससे अधिक न .. ठहरे।
चिकित्सा--- (१.) तरी निकालनेको यारजात खिलाओ। (२) इस रोगमें वमन करना मुफीद है। (३) सूखे भोजन दो । जैसे, कवाब गरम और सूखे मसाले मिलाकर । (४) इन्द्रायणका गूदा, अंजरूस, सोया, तुतरूग, बूल, केशर और
अगर,--इन सबको महीन पीसकर शहदमें मिला लो। फिर
इसमें ऊनका टुकड़ा भरकर योनिमें रखो। (५) गुलाबके फूल, अजफारूतीव, सातर, बालछड़, सुक और तजइनका काढ़ा बनाकर, उससे गर्भाशयमें हुकना करो।
पाँचवाँ भेद ।। कारण-वात, पित्त या कफ । नतीजा-गर्भाशय और वीर्य बिगड़ जाते हैं।
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