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स्त्री रोगोंकी चिकित्सा-बाँझका इलाज। ४२३
दूसरा भेद । कारण-गर्भाशयमें गरमी। नतीजा-वीर्य जलकर खाक हो जाता है।
लक्षण(१) रजमें गरमी, कालापन और गाढ़ापन । (२) अगर सारे शरीरमें गरमी होगी, तो शरीर दुबला और रंग पीला
होगा।
(३) बाल ज़ियादा होंगे।
चिकित्सा(१) सर्दी पहुँचानेको शर्बत बनफशा, शर्बत नीलोफर, शर्बत नश
खाश, शर्बत-सेब या शर्बत चन्दन प्रभृति पिलाओ। (२) मुके बच्चे, हिरन और बकरेका मांस खिलाओ। (३) घीया या पालक खिलाओ। (४) अण्डेकी जर्दी, मुर्गीकी चर्बी और बतखकी चर्बीको बनफशाके
तेल में मिलाकर स्त्रीकी योनिमें रखवाओ। (५) जहाँ कहीं पित्त जियादा हो, वहाँसे उसे उचित उपायसे निकालो।
तीसरा भेद । कारण-गर्भाशयमें खुश्की। नतीजा-वीर्य सूख जाता है।
लक्षण(१) रजस्वला हो, पर बहुत कम । (२) अगर सारे शरीरमें खुश्की हो, तो शरीर दुबला और निर्बल हो ।
विशेष खुश्कीसे खाल सूखी-सी मालूम हो । (३) मूत्र स्थान सदा सूखा रहे ।
चिकित्सा(१) शर्बत बनफशा और शर्बत नीलोफर पिलाओ।
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