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४२० . चिकित्सा-चन्द्रोदय । .. गर्भाशयमें छै तरहके दोष होनेसे स्त्रियाँ बाँझ हो जाती हैं; उसी तरह हिकमतके ग्रन्थ "तिब्बे अकबरी"में बाँझ होनेके तेरह कारण, दोष या भेद लिखे हैं। उनमेंसे कितने ही हमारे छै दोषोंके अन्दर आ जाते हैं
और चन्द नये भी हैं । उन सबके जान लेनेसे वैद्यकी जानकारी बढ़ेगी और उसे बॉझके इलाज में सुभीता होगा, इसलिये हम उनको विस्तारसे लिखते हैं। अगर वैद्य लोग या अन्य सज्जन हरेक बातको अच्छी तरह समझेंगे, तो उन्हें अवश्य सफलता होगी, “बन्ध्याचिकित्सा"के लिये उन्हें और ग्रन्थ न देखने होंगे।
(१) गर्भाशयमें शीतका पैदा होकर, वीर्य और खूनको जमा कर सुखा देना।
(२) गर्भाशयमें गरमी का पैदा होकर, वीर्यको जलाकर खराब कर देना।
(३) गर्भाशयमें खुश्कीका पैदा होकर, वीर्यको सुखा देना । - (४) गर्भाशयमें तरी का पैदा होकर, गर्भके ठहरानेवाली ताक़तको कमजोर करना । .. (५) वात, पित्त या कफका गर्भाशयमें कुपित होकर वीर्यको बिगाड़ देना।
(६) स्त्रीका मोटा हो जाना और शरीर तथा गर्भाशयमें चरबीका बढ़ जाना।
(७) स्त्रीका एक दमसे दुर्बल या कमजोर होना । इस दशामें रजके ठीक न होने या रज पैदा न होनेसे बच्चेके शरीर बननेको मसाला नहीं मिलता और उसे भोजन भी नहीं पहुँचता।
(८) बालकके भोजन--रजका स्त्रीके शरीरमें किसी वजहसे बन्द हो जाना।
(E) गर्भाशयमें गर्म सूजन, सख्ती या निकम्मे घाव होना।
(१०) गर्भाशयमें गाढ़ी हवाका पैदा होना,जो वीर्य और बालकको न ठहरने दे। .
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