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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ चिकित्सा-चन्द्रोदय । (३) स्त्री-पुरुषमें मुहब्बत न होना। (४) असमयमें मैथुन करना। फूलमें क्या दोष है, उसकी परीक्षा-विधि । फूलमें क्या दोष हुआ है, इसको वैद्य स्त्रीके पति-द्वारा ही जान सकता है। वैद्य नाड़ी पकड़कर जान लेय, ऐसा उपाय नहीं । स्त्री जब चौथे दिन ऋतु-स्नान कर ले, तब पति मैथुन करे। मैथुन करनेके बाद, तत्काल ही अपनी स्त्रीसे पूछे तुम्हारा कौनसा अङ्ग दर्द करता है। अगर स्त्री कहे,-कमरमें दर्द होता है, तो समझो, फूलपर मांस बढ़ गया है। अगर वह कहे,-शरीर काँपता है, तो समझो, फूलमें वायु भर गया है। अगर कहे,-पिंडलियोंमें पीड़ा होती है, तो समझो फूलमें कीड़े पड़ गये हैं । अगर कहे, छातीमें दर्द है, तो समझो, फूल वायु-वेगसे शीतल हो गया है । अगर कहे,-सिरमें दर्द जान पड़ता है, तो समझो, फूल जल गया है। अगर जाँघोंमें दर्द कहे,- तो समझो, कि फूल उलट गया है । इसको खुलासा यों समझियेः (१) शरीर काँपना= फूलमें वायु भर गया है। (२) कमर में दर्द = फूलपर मांस बढ़ा है। (३) पिंडलियोंमें दर्द = फूलमें कीड़े पड़ गये हैं। (४) छातीमें दर्द = फूल शीतल हो गया है। (५) सिरमें दर्द = फूल जल गया है। (६) जाँघोंमें दर्द = फूल उलट गया है। फूल-दोषकी चिकित्सा । (१) अगर फूलमें वायु भर गया हो, तो जरा-सी हींगको काली तिलीके तेलमें पीसकर, उसमें रूईका फाहा भिगोकर, तीन दिनों तक योनिमें रखो। हर रोज़ ताजा दवा पीस लो। ईश्वर-कृपासे, तीन दिनमें यह दोष नष्ट हो जायगा। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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