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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा--नष्टार्तव । ४०१ आलस्य है । एक प्रकारके रजोधर्ममें थोड़ा या बहुत खून तो गिरता है, पर माथेमें दर्द, गालोंपर लाली, हृदय काँपना और पेट भारी रहना,-ये लक्षण होते हैं। इसमें रजोधर्म होते समय तकलीफ होती है और यह तकलीफ रजोधर्मके चार-पाँच दिन पहलेसे शुरू होती है और रजोधर्म होते ही बन्द हो जाती है। इसका कारण कोष्ठबद्ध या क़ब्ज है।
एक कृत्रिम या बनावटी ऋतु भी होती है। इसमें रज गिरती या थोड़ी गिरती है । लारके साथ खून आता है। खूनकी क़य होती
और योनिसे सफ़ेद पानी निकलता अथवा रजके एवजमें कोई दूसरा पदार्थ निकलता है।
शुद्ध आर्तवके लक्षण । "बङ्गसेन में लिखा है--जो आर्तव महीने-महीने निकले, जिसमें चिकनापन, दाह और शूल न हों, जो पाँच दिनों तक निकलता रहे, न बहुत निकले और न थोड़ा-ऐसा आर्तव शुद्ध होता है। ____ जो आर्तव खरगोशके खूनके समान लाल हो एवं लाखके रसके जैसा हो और जिसमें सना हुआ कपड़ा जलमें धोनेसे बेदाग़ हो जाय, उसको शुद्ध आर्तव कहते हैं।
मासिक-धर्म जारी करनेवाले नुसखे ।
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(१) काले तिल ३ माशे, त्रिकुटा ३ माशे और भारंगी ३ माशेइन सबका काढ़ा बनाकर, उसमें गुड़ या लाल शक्कर मिलाकर, रोज सवेरे-शाम, पीनेसे मासिक-धर्म होने लगता है।
नोट--अगर शरीरमें खून कम हो, तो पहले द्राक्षावलेह, माषादि मोदक, दूध, घी, मिश्री, बालाईका हलवा प्रभुति ताक़तवर और खून बढ़ानेवाले पदार्थ
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