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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा--प्रदर रोग । ३४३ XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX - प्रदर रोगकी चिकित्सा-विधि ।
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX वैद्यको प्रदर रोगके लक्षण, कारण अच्छी तरह समझकर चिकित्सा करनी चाहिये। सब तरहके प्रदरोंमें पहले "वमन" करानेकी प्रायः सभी शास्त्रकारोंने राय दी है; पर वमन कराना ज़रा कठिन काम है । जिनको पूरा अनुभव हो, वे ही इस कामको करें। “बङ्गसेन में लिखा है:--सब तरहके प्रदरोंमें पहले वमन करानी चाहिये और ईखके रस तथा दाखके जलसे तर्पण कराना चाहिये एवं पीपल, शहद, माँड, नागरमोथेका कल्क, जौ और गुड़का शर्बत देना चाहिये। मतलब यह है, इनमेंसे किसीसे तर्पण कराकर वमन करानी चाहिये । "वैद्य-विनोद में लिखा है:-- __सर्वेषपूर्वं वमनं प्रदिष्टं रसेतु मुद्गोदक तर्पणैश्च ।
सब तरहक प्रदरोंमें, ईखके रस और मुद्गोदक--मूंगके यूषसे तर्पण कराकर वमन करानी चाहिए । यद्यपि यह ढंग बहुत ही अच्छा है, पर साधारण वैद्योंको इस खटखटमें न पड़ना ही अच्छा है । वमन करानेके सम्बन्धमें, हमने “चिकित्सा-चन्द्रोदय" दूसरे भागके पृष्ठ १३६-१४० में जो लिखा है, उसे पहले देख लेना जरूरी है।
सूचना-योनिरोग, रक्तपित्त, रक्कातिसार और रकाशका इलाज जिस तरह किया जाता है; उसी तरह चारों प्रकारके प्रदरोंका भी इलाज किया जाता है । "चरक" में लिखा है :
योनीनां वातलाद्यानां यद्युक्तमिह भेषजम् । चतुर्णा प्रदराणाश्च तत्सर्वं कारयेभिषक् ।। रक्तातिसारिणांचैव तथा लोहित पित्तिनाम् ।
रक्तार्शसाश्च यत्प्रोक्तं भेषजं तच्चकारयेत् ।। .. वातज, पित्तज, कफज और सन्निपातज “योनि-रोगों"की जो चिकित्सा कही गई है, वैद्यको चार प्रकारके प्रदरों में भी वही
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