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स्त्री-रोगोंकी चिकित्सा--प्रदर रोग । मजा और शङ्खकी-सी गन्धवाला खून बहता है। विद्वान लोग इस चौथे प्रदर रोगको असाध्य कहते हैं, अतः चतुर वैद्यको इस प्रदरका इलाज न करना चाहिये।
नोट- "चरक' में लिखा है-रजस्राव होने, स्त्रीके अत्यन्त कष्ट पाने और खून नाश होने से; यानी सब हेतुओंके मिल जानेसे वात, पित्त और कफ तीनों दोष कुपित हो जाते हैं। इन तीनोंमें "वायु" सबसे ज़ियादा कुपित होकर असाध्य कफका त्याग करता है; तब पित्तकी तेज़ीकेमारे,प्रदरका खून बदबूदार, लिबलिबा, पीला और जला-सा हो जाता है । बलवान् वायु, शरीरकी सारी वसा और मेदको ग्रहण करके, योनिकी राहसे, घी, मजा और वसाके-से रंगवाला पदार्थ हर समय निकाला करता है। इसी वजहसे उक्त स्त्रीको प्यास, दाह और ज्वर प्रभुति उपद्रव होते हैं । ऐसी क्षीणरक्ता--कमज़ोर स्त्रीको असाध्य समझना चाहिये ।
खुलासा पहचान । वातज प्रदरमें-रूखा, झागदार और थोड़ा खून बहता है। पित्तज प्रदरमें-पीला, नीला, लाल और गरम खून जाता है। कफज प्रदरमें--सफेद, लाल और लिबलिबा स्राव होता है। त्रिदोषज प्रदरमें--बदबूदार, गरम, शहदके समान खून बहता है।
नोट--ध्यान रखना चाहिये, सोम रोग मूत्र-मार्गमें और प्रदर रोग गर्भाशयमें होता है। कहा है:
सोमरूङ् मूत्रमार्गे स्यात्प्रदरोगर्भवम॑नि ।
अत्यन्त रुधिर बहनेके उपद्रव ।। अगर प्रदर रोगवाली स्त्रीके रोगका इलाज जल्दी ही नहीं किया जाता, उसके शरीरसे बहुत ही जियादा खून निकल जाता है, तो कमजोरी और बेहोशी प्रभृति अनेक रोग उसे आ घेरते हैं। "भावप्रकाश” और “बङ्गसेन” प्रभृति ग्रन्थों में लिखा है:
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