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मकड़ी-विष-नाशक नुसख्ने ।
३३१ (११) कटभी, अर्जुन, सिरस, बेल और दूधवाले वृक्षों (पाखर, बड़, गूलर, पीपल और बेलिया पीपर) की छालोंके काढ़े, कल्क या चूर्णके सेवन करनेसे मकड़ी और दूसरे कीड़ोंका विष नष्ट हो जाता है।
। १२) चन्दन, पद्माख, कूट, तगर, खस, पाढ़ल, निर्गुण्डी , सारिवा और बेल--इन सबको एकत्र पीसकर लेप करनेसे मकड़ीका विष नष्ट हो जाता है।
(१३) चन्दन, पद्माख, खस, सिरस, सम्हालू, क्षीरविदारी, तगर, कूट, सारिवा, सुगन्धवाला, पाढर, बेल और शतावर-इन सबको एकत्र पीसकर लेप करनेसे मकड़ीका विष नाश हो जाता है।
(१४) चन्दन, पद्माख, कूट, जवासा, खस, पाढ़ल, निर्गुण्डी, सारिवा और ल्हिसौड़ा--इन सबको एकत्र पीसकर लेप करनेसे मकड़ीका विष नाश हो जाता है। परीक्षित है।
नोट-नं० १२ और नं० १४ के नुसखे में कोई बड़ा भेद नहीं। उसमें तगर और बेल है, इसमें जवासा और ल्हिसौड़ा है; शेष दवायें दोनोंमें एक ही हैं।
(१५) कड़वी खलकी ७ दिन धूनी देनेसे मकड़ीका विष नष्ट हो जाता है।
नोट-इसके साथ ही खली और हल्दीको पानीके साथ पीसकर इनका लेप किया जाय, तो क्या कहना, फौरन आराम हो। परीक्षित है। "वैद्यसर्वस्व"में लिखा हैः--
याति गोमयलेपेन कंडूः खजू भवा तथा।। कटुपिण्याक धूमकैः मकरीजंविषं याति सप्ताहपरिवर्तितः ।।
(१६) सफ़ेद पुनर्नवाकी जड़को महीन पीसकर और मक्खनमें मिलाकर लगानेसे मकड़ीके विषसे हुए विकार नष्ट हो जाते हैं।
(१७) अपामार्गकी जड़को महीन पीसकर और मक्खनमें मिलाकर लगानेसे मकड़ीके चेपसे हुए दाफड़-ददौरे और फुन्सी आदि सब नाश हो जाते हैं।
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