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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बावले कुत्तेके काटेकी चिकित्सा । ३०६ वहाँसे बहुत-सा काला खून निकलता है। विष-बुझे हुए तीर आदि . हथियारोंसे लगनेसे जो लक्षण होते हैं, वही पागल कुत्ते और स्यार आदिसे काटनेसे होते हैं, यह बात “सुश्रुत” में लिखी है । पागलपनके असाध्य लक्षण । जिस पागल कुत्ते या स्यार आदिने मनुष्यको काटा हो, अगर मनुष्य उसीकी-सी चेष्टा करने लगे, उसीकी-सी बोली बोलने लगे और अन्य क्रियाओंसे हीन हो जावे--मनुष्यके-से और काम न करे, तो वह मनुष्य मर जाता है । जो मनुष्य अपने-तई काटनेवाले कुत्ते या स्यार आदिकी सूरतको पानी या काँचमें देखता है, वह असाध्य होता है। मतलब यह कि, काटनेवाले कुत्ते प्रभृतिके न होनेपर भी, अगर मनुष्य उन्हें हर समय देखता है अथवा काँच-आईने या पानीमें उनकी सूरत देखता है, तो वह मर जाता है। - अगर मनुष्य पानीको देखकर या पानीकी आवाज़ सुनकर अकस्मात् डरने लगे, तो समझो कि उसे अरिष्ट है; अर्थात् वह मर जायगा । __ नोट-जब मनुष्य कुत्तेके काटनेपर कुत्तेकी-सी चेष्टा करता है, उसीकी-सी बोली बोलता और पानीसे डरता है, तब बोल-चालकी भाषामें उसे "हड़कवाय" हो जाना कहते हैं। हिकमतसे बावले कुत्ते के काटनेके लक्षण । __ अगर बावला कुत्ता या कोई और बावला जानवर मनुष्यको काट खाता है, और कई दिन तक उस मनुष्यका इलाज नहीं होता, तो उसकी दशा निकम्मी और अस्वाभाविक हो जाती है। बावले कुत्ते या बावले स्यार आदिके काटनेसे मनुष्यको बड़े-बड़े सोच और चिन्ता-फिक्र होते हैं, बुद्धि हीन हो जाती है, मुँह सूखता है, प्यास लगती है, बुरे-बुरे स्वप्न दीखते हैं, उजालेसे भागता है, अकेला For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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