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चींटियोंके काटेकी चिकित्सा ।
२६६. के समान है; यानी एककी दवा दूसरेके विषको शान्त करती है । चींटीके काटे
और बर्रके काटेका भी एक ही इलाज है । बड़ी बरं काटे या शरीरमें मवाद हो तो फस्द खोलना हितकारी है।
(२८) बर्र या ततैयेके काटते ही घी लगाकर सेक देना परीक्षित उपाय है। इस उपायसे जहर ज़ियादा जोर नहीं करता। . (२६ ) काटे हुए स्थानपर श्राकका दूध लगा देनेसे भी बरका जहर शान्त हो जाता है। - (३०) बरकी काटी हुई जगहपर घोड़ेके अगले पैरके टखनेका नाखून पानीमें घिसकर लगाना भी उत्तम है। ..
(३१) बरके काटे स्थानपर ज़रा-सा गन्धकका तेजाब लगा देना भी अच्छा है। - (३२) बहुत लोग बर्रके काटते ही दियासलाइयोंका लाल मसाला पानीमें घिसकर लगाते हैं या काटी हुई जगहपर दो बूंद पानी डालकर दियासलाइयोंका गुच्छा उस जगह मसालेकी तरफसे रगड़ते हैं। फायदा भी होते देखा है । परीक्षित है। .. -
(३३) कहते हैं, कुनैन मल देनेसे भी बरी और छोटे बिच्छूका विष शान्त हो जाता है। . . . . . . . ,
(३४) दशांगका लेप करनेसे बर्रका जहर फौरन उतर जाता है। नोट-दशाङ्गकी दवाएँ पृष्ठ ३०२ के नं. १ में लिखी हैं।
(३५) स्पिरिट एमोनिया एरोमेटिक लगाने और चाय या काफी पिलानेसे बर्रका विष शान्त हो जाता है।
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चींटियोंके काटेकी चिकित्सा।
चींटीको संस्कृतमें “पिपीलिका" कहते हैं। सुश्रुतमें- स्थूलशीर्षा, संबाहिका, ब्राह्मणिका, अंगुलिका, कपिलिका और चित्र
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