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चिकित्सा-चन्द्रोदय । विषका क्लेद बढ़ता है और वह गीले गुड़की तरह फैलता है; यानी. बरसातमें विषका बड़ा जोर रहता है। किन्तु वर्षाऋतुके अन्तमें, अगस्त मुनि विषको नष्ट करते हैं, इसलिये वर्षाकालके बाद विष हीनवीर्यकमजोर हो जाता है । इस विषमें आठ वेग और दश गुण होते हैं। इसकी चिकित्सा बीस प्रकारसे होती है। विषके सम्बन्धमें "चरक"में यही सब बातें लिखी हैं । सुश्रुतमें थोड़ा भेद है।
. सुश्रुतमें लिखा है, पृथ्वीके आदि कालमें, जब ब्रह्माजी इस जगत्की रचना करने लगे, तब कैटभ नामका दैत्य, मदसे माता होकर, उनके कामोंमें विघ्न करने लगा। इससे तेजनिधान ब्रह्माजीको क्रोध हुआ । उस क्रोधने दारुण शरीर धारण करके, उस कैटभ दैत्यको मार डाला। उस क्रोधसे पैदा हुए कैटभके मारनेवालेको देखकर, देवताओंको विषाद हुआ-रज हुआ, इसीसे उसका नाम "विष" पड़ गया । ब्रह्माजीने उस विषको अपनी स्थावर और जङ्गम सृष्टिमें स्थान दे दिया; यानी न चलने-फिरनेवाले वृक्ष, लता-पता आदि स्थावर सृष्टि और चलने-फिरनेवाले साँप, बिच्छू , कुत्ते, बिल्ली आदि जङ्गम सृष्टिमें उसे रहनेकी आज्ञा दे दी। इसीसे विष स्थावर और जङ्गम-दो तरहका हो गया। ___ नोट-विष नाम पड़नेका कारण तो दोनों ग्रन्थों में एक ही लिखा है; पर "चरक"में उसकी पैदायश समुद्र या पानीसे लिखी है और सुश्रुतमें ब्रह्माके क्रोधसे । चरक और सुश्रुत-दोनोंके मतसे ही विष अग्निके समान गरम और तीक्ष्ण है। सुश्रुतमें तो विषकी पैदायश क्रोधसे लिखी ही है। क्रोधसे पित्त होता है और पित्त गरम तथा तीक्ष्ण होता है। चाकने विषको अम्बुसम्भवपानीसे पैदा हुअा-लिखकर भी, अग्नि व तीक्ष्ण लिखा है। मतलब यह कि विषके गरम और तेज़ होने में कोई मत-भेद नहीं। चरक मुनि उसे जलसे पैदा हुआ कहकर, यह दिखाते हैं, कि जलसे पैदा होनेके कारण हो विष वर्षाऋतुमें बहुत ज़ोर करता है और यह बात देखने में भी आती है। बरसातमें साँपका जहर बड़ी तेज़ीपर होता है । बादल देखते ही बावले कुत्ते का ज़हर दबा हुआ भी-कुपित हो उठता है, इत्यादि।
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