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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ चिकित्सा-चन्द्रोदय । पछने लगाकर, वहाँका खराब खून एकदम निकाल दो। इस कामके बाद भी वही सिरस आदिका लेप कर दो या घरका धूआँ, मँजीठ, हल्दी और सँधेनोनको पीसकर लेप कर दो। खुलासा यह है: (क) काटी हुई जगहको दाग दो और ऊपरसे दवाओंका लेप कर दो । अथवा नश्तर प्रभृतिसे वहाँका खराब खून निकालकर दवाओंका लेप करो। (ख) शिरा वेधकर या फस्द खोलकर खराब खून और विषको निकाल दो। - (ग) खाने-पीनेको खून साफ़ करने और जहर नाश करनेवाली दवा दो । ये आरम्भिक या शुरूके उपाय हैं। पहले यही करने चाहिये। (४) अगर विष आमाशयमें पहुँच जाय-जब विष आमाशयमें पहुँचेगा, लार बहने लगेगी-तो नीचे लिखे काढ़े पिलाकर वमन करानी चाहिये:-- (क) अरलूकी जड़, जंगली तोरई की जड़, मैनफल और देवदालीका काढ़ा पिलाकर वमन कराओ; पर पहले दही पिला दो, क्योंकि खाली पेट वमन कराना ठीक नहीं है। (ख ) बच, मैनफल, जीमूत और कूटको गो-मूत्र में पीसकर, दहीके साथ पिलाओ। इसके पीनेसे कय होंगी और सब तरहके चूहोंका विष नष्ट हो जायगा। (ग) दही पिलाकर, जंगली कड़वी तोरई, अरलू और अंकोटका काढ़ा पिलाओ । इससे भी वमन होकर विष नष्ट हो जायगा। (घ) कड़वी तोरई, सिरसका फल, जीमूत और मैनफल - इनके चूर्णको दहीके साथ पिलाओ। इससे भी वमनके द्वारा विष निकल जायगा। (५) अगर जरूरत समझो, तो जुलाब भी दे सकते हो; वाग्भट्टजी जुलाबकी राय देते हैं। निशोथ, कालादाना और त्रिफला,-इन तीनोंकाः For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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