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चिकित्सा-चन्द्रोदय। ल्हिसे या सने हुए कपड़ोंसे मनुष्यका शरीर छू जाता है; यानी ऐसे कपड़े या अन्य पदार्थ मनुष्य-शरीरसे छू जाते हैं अथवा चूहोंके नाखून, दाँत, मल और मूत्रका मनुष्य-शरीरसे स्पर्श हो जाता है, तो शरीरका खून, दूषित होने लगता है। यद्यपि इसके चिह्न, जल्दी ही नज़र नहीं आते, पर कुछ दिनों बाद शरीरमें गाँठे हो जाती हैं, सूजन
आती है, कर्णिका--किनारेदार चिह्न, मण्डल-चकत्ते, दारुण फुन्सियाँ, विसर्प और किटिभ हो जाते हैं । जोड़ों में तीव्र वेदना और फूटनी होती तथा ज्वर चढ़ आता है। इनके अलावा दारुण मूर्छा-बेहोशी, अत्यन्त निर्बलता, अरुचि, श्वास, कम्प और रोमहर्ष--ये लक्षण होते हैं । ये लक्षण “सुश्रुत में लिखे हैं। किन्तु वाग्भट्टने ज्वरकी जगह शीतज्वर और प्यास तथा कफमें लिपटे हुए बहुत ही छोटे-छोटे चूहोंके आकारके कीड़ोंका वमन या कयमें निकलना अधिक लिखा है। - बंगसेन और भावप्रकाशमें लिखा है: - चूहेके काटनेसे खून पीला पड़ जाता है। शरीरमें चकत्ते उठ आते हैं; ज्वर, अरुचि और रोमांच होते हैं, एवं शरीरमें दाह या जलन होती है। अगर ये लक्षण हों, तो समझना चाहिये कि, दूषी विषवाले चूहेने काटा है।
असाध्य विषवाले चूहेके काटनेसे मूर्छा-बेहोशी, शरीरमें सूजन, शरीरका रंग और-का-और हो जाना, शब्द या आवाजको ठीक तरहसे न सुनना, ज्वर, सिरमें भारीपन, लार गिरना और खूनकी कय होना-ये लक्षण होते हैं । अगर ऐसे लक्षण हों, तो समझना चाहिये, कि जहरी चूहेने काटा है। - वाग्भट्टने लिखा है, उपरोक्त असाध्य लक्षणोंवाले तथा जिनकी वस्ति सूजी हो, होठ विवर्ण होगये हों और चूहेकी आकारकी गाँठे हो रही हों, ऐसे चूहेके विषवाले रोगियोंको वैद्य त्याग दे; यानी ये असाध्य हैं। .. "तिब्बे अकबरी"में लिखा है:- चूहेके काटनेसे अङ्ग सूजकर घायल
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