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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ चिकित्सा-चन्द्रोदय। मनुष्य उस समय भी नहीं समझता, कि यह सब मूषक महाराजकी कृपाका नतीजा है। अब आप ही समझिये कि, यह धोखा होना नहीं तो क्या है ? ___ इतना ही नहीं, जब चूहेके विषके विकार प्रकट होते हैं, तब भी नहीं मालूम होता, कि यह गणेश-वाहनके विषका फल है। क्योंकि चूहेके विषके प्रभावसे मनुष्यके शरीरमें ज्वर, अरुचि, रोमाञ्च आदि उपद्रव होते और चमड़ेपर चकत्ते-से हो जाते हैं। चकत्ते वगैरः वातरक्त, रक्तविकार और उपदंश रोगमें भी होते हैं । इससे अच्छे-अच्छे अनुभवी वैद्य-डाक्टर भी धोखा खा जाते हैं। कोई उपदंशकी दवा देता है, तो कोई वातरक्त-नाशक औषधि देता है, पर असल तह तक कोई नहीं पहुँचता। यद्यपि अनेक बार अटकल-पच्चू दवा लग जाती है, पर रोगका निदान ठीक हुए बिना बहुधा रोग आराम नहीं होता। कुत्ता काटता है, तो उसका विष तत्काल ही कोप नहीं करता, काटते ही हड़कवाय नहीं होती, समय और कारण मिलनेपर हड़कवाय होती है। इसी तरह चूहके काटने या और तरहसे शरीरमें उसका विष घुस जानेसे तत्काल ही विकार नज़र नहीं आते, समय और काल पाकर विकार मालूम होते हैं । पर कुत्ते के काटनेपर ज्योंही हड़कवाय होती है, लोग समझ लेते हैं, कि अमुक दिन कुत्तेने काटा था; पर चूहेके विषसे तो कोई ऐसी बात नज़र नहीं आती। कौन जाने कब किस वस्त्र प्रभृतिके शरीरसे छू जानेसे चूहेका विष शरीरमें घुस गया ? इस तरह चूहेके विषके मनुष्य-शरीरमें प्रवेश कर जानेपर धोखा ही होता है । इसीसे उचित चिकित्सा नहीं होती और चूहेका विष धीरेधीरे जीवनी-शक्तिका ह्रास करके, अन्तमें मनुष्यके प्राण हर लेता है। ___ साँपवाले घरमें न रहने, साँपको घरसे किसी तरह निकाल बाहर करने या मार डालनेकी सभी विद्वानोंने राय दी है। नीतिकारोंने भी लिखा है:- . For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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