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चिकित्सा-चन्द्रोदय । गोलियोंको पानीके साथ पीसकर, काटे हुए स्थानपर इनका लेप कर दो और इन्हींमेंसे कुछ लेकर नेत्रोंमें आँज दो। अच्छी चीज़ है। वैद्योंको पहलेसे तैयार करके पास रखनी चाहियें । ___(७७) कबूतरकी बीट, हरड़, तगर और सोंठ -इनको बिजौरे नीबूके रसमें मिलाकर रोगीको देनेसे बिच्छूका जहर उतर जाता है । वाग्भट्ट महाराज लिखते हैं, यह “परमोवृश्चिकागदः" है; यानी बिच्छूके काटेकी श्रेष्ठ दवा है। . (७८ ) करंजुवा, कोहका पेड़, ल्हिसौड़ेका पेड़, गोकर्णी और कुड़ा-इन सब पेड़ोंके फूलोंको दहीके मस्तुमें पीसकर बिच्छूके डंकमारे स्थानपर लगाना चाहिये । , (७६) सोंठ, कबूतरकी बीट, बिजौरेका रस, हरताल और सैंधानमक,--इनको महीन पीसकर, बिच्छूके काटे स्थानपर लेप करनेसे बिच्छूका जहर फौरन ही उतर जाता है।
(८०) अगर बिच्छूके काटनेपर, जहरका जोर किसी लेप या अंजन और खानेकी दवासे न टूटे, तो एक तिल-भरसे लगाकर दो, चार, छै और आठ जौ-भर तक "शुद्ध सींगिया विष" या "शुद्ध बच्छनाभ विष" अथवा और कोई उत्तम विष रोगीको खिलाओ और इन्हींका डंक मारी हुई जगहपर लेप भी करो। याद रखो, यह अन्तकी दवा है । विष खिलाकर गायका घी बराबर पिलाते रहो । घी ही विषका अनुपान है।
(८१) बच, हींग, बायबिडंग, सैंधानोन, गजपीपल, पाठा, काला अतीस, सोंठ, कालीमिर्च और पीपर-इन दसों दवाओंको “दशांग
औषध" कहते हैं । यह दशांग औषध काश्यपकी रची हुई है । इस दवाके पीनेसे मनुष्य समस्त जहरीले जानवरोंके विषको जीतता है।
नोट-इन दवाओंको बराबर-बराबर लेकर कूट-पीसकर बना लेना चाहिये । समयपर फाँककर, ऊपरसे पानी पीना चाहिये । अगर यह पानीके साथ पीसकर और पानी में ही घोलकर पीयी जावे, तो बहुत ही जल्दी लाभ हो । पर साथ ही
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