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[ण 1 पाठक ! अब कभी आपको ज्वर और अतिसार या ज्वरातिसारका रोगी मिले, उसे चाहे बड़े-बड़े चिकित्सक न आराम कर सके हों, आप ऊपरकी विधिसे दवा दें, निश्चय ही आराम होगा और लोगोंको आश्चर्य होगा। जिसे केवल ज्वर हो, अतिसार न हो, उसे ये गोलियाँ न देनी चाहियें । हाँ, जिसे केवल आमातिसार या रक्तातिसार हो, ज्वर न हो, उसे भी ये गोलियाँ दी जा सकती हैं । हाँ, मरीजाके हाथपैरों और मुखपर वरम या सूजन भी आ गई थी, अतः शरीरके शोथ या सूजन नाश करनेके लिये, हमने "नारायण तैल" की मालिश कराई और आगे छठे दिनसे, पहलेकी दवाएँ बन्द करके, “सितोपलादि चूर्ण" जो दूसरे भागके पृष्ठ ४४० में लिखा है, खानेको देते रहे और भोजनके साथ "हिंगाष्टक चूर्ण' सेवन कराते रहे । पर एक तरह ज्वरके चले जानेपर भी, मरीजाकी ज़बानका जायका न सुधरा, मुंहका स्वाद खराब रहने लगा, भूख लगनेपर भी खानेके पदार्थ अरुचिके मारे अच्छे न लगते थे। हमने समझ लिया कि, अभी ज्वरांश शेष है, अतः तीन माशे चिरायता रातको दो तोले पानीमें भिगोकर, सवेरे ही उसे छानकर, उसमें दो रत्ती कपूर और दो रत्ती शुद्ध शिलाजीत मिलाकर पिलाना शुरू किया। सात दिनमें रोगिणीने पूर्ण आरोग्य लाभ किया। इस नुसनेने हमारे एक ज्योतिषी-मित्रकी घरवालीको चार ही दिनमें चंगा कर दिया। वह कोई चार महीनेसे ज्वर पीड़ित थीं । कई डाक्टर-वैद्योंका इलाज हो चुका था।
इसमें कृष्णकी कृपाका क्या फल देखा गया, यह हमने नहीं कहा । क्योंकि रोगी तो और भी अनेक, हर दिन असाध्य अवस्थामें पहुँच जानेपर भी, आरोग्य लाभ करते हैं। बात यह है, कि जिस दिन रातको दस्तोंका नम्बर लग गया, ज्वर धीमा न पड़ा, अवस्था
और भी निराशाजनक हो गई, डाक्टर हताश होकर जवाब दे गये, हमने कृष्णसे प्रार्थना की कि, रोगीका जीवन है, तो रोगी दस-पाँच
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