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[ ड] करना सिरपर जोखिम लेना है। अगर आप हमारी बात मानें, तो मरीजाका इलाज बतौर ट्रायलके तीन दिन स्वयं करें, नहीं तो हमारे हाथमें सौंपें । मैं आपकी इस कार्रवाईसे मन-ही-मन बहुत कुढ़ता हूँ। आप तो आजकल कई दिनसे कटरेमें आते ही नहीं। मैं नित्य आपके आफिसमें जाकर, बा. बद्रीप्रसादजीसे समाचार पूछा करता हूँ। वह कहते हैं, आज सवेरे फलाँ डाक्टर आया था, दोपहरको फलाँ आया और अब बाबू रामप्रतापजी अमुकको लेने गये हैं, तब मेरे शरीरका खून खौल उठता है। आज मैं बहुत ही दुखी होकर यहाँ
आया हूँ। मित्रवर ! अपने आयुर्वेदमें क्या नहीं है ? आप काञ्चनको त्यागकर काँचके पीछे भटक रहे हैं !" पण्डितजीका तत्वपूर्ण उपदेश काम कर गया, सबके दिलोंमें उनकी बात अँच गई। रोगिणीने हमारी चिकित्साके लिये इशारा किया। बस, फिर क्या था, हम जगदीशका नाम लेकर, इष्टदेव कृष्णके सुपरविजनमें, चिकित्सा करने लगे।
अब हम अपने वैद्य-विद्या सीखनेके अभिलाषियोंके लाभार्थ यह बता देना अनुचित नहीं समझते, कि मरीजाको मर्ज़ क्या था और उन्हें किन-किन मामूली दवाओंसे आराम हुआ। यद्यपि जो आयुर्वेदके धुरन्धर विद्वान्, प्राणाचार्य या भिषक्श्रेष्ठ हैं, उन्हें इन पंक्तियोंसे कोई लाभ होनेकी सम्भावना नहीं, उनका अमूल्य समय वृथा नष्ट होगा, पर चूँकि हमारा यह ग्रन्थ बिल्कुल नौसिखियोंके लिये, आयुर्वेदका ककहरा भी न जाननेवालोंके लिये लिखा जा रहा है। अतः इस अनुभूत चिकित्सासे उन्हें लाभकी सम्भावना है, क्योंकि ऐसे ही इलझे हुए रोगियों या पेचीदा केसोंको देखने-सुननेसे चिकित्सा सीखनेवाले अनुभवी बनते हैं। ये बातें कहीं-कहींपर बड़ा काम दे जाती हैं।
रोगिणीको गर्भावस्थामें ही ज्वर होता था। वह होमियोपैथी दवा पसन्द करती हैं, अतः उन्हें वही दवा दी जाती और ज्वर दब जाता था। महीनेमें चार बार ज्वर आता और आराम हो जाता।
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