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[ 8 ] कोपसे लंग्ज वगैरकी जाँच करते, नुसता लिखते और आठ-आठ, सोलह-सोलह एवं बत्तीस-बत्तीस रूपराम जेबके हवाले करके चलते बनते । यह तमाशा देख हमारी नाकों दम आ गया। एक तरफ तो अनाप-शनाप रुपया व्यर्थ व्यय होने लगा; दूसरी ओर गृहणीके चलबसनेसे घरकी क्या दशा होगी, छोटे-छोटे चार बच्चे किस तरह पलेंगे, इस चिन्ताने हमें चूर कर दिया। हम खुद भी मरीज़ बन गये । बीचबीचमें जब कभी हम निराश होकर डाक्टरी इलाज त्यागकर अपना इलाज करना चाहते, हमारे ही आदमी हम पर फबतियाँ उड़ाते, हमें अव्वल नम्बरका माइज़रया कंजूस या मक्खीचूस कहते । इसीलिहाजसे हम डाक्टरोंको न छोड़ सके । अन्तमें होमियोपैथीके एक सुप्रसिद्ध
और अद्वितीय चिकित्सक भी आये। उन्होंने भी अपने सब तीर चला लिये। जब उनके तरकशमें कोई भी तीर रह न गया तब, एक दिन सन्ध्या-समय वह भी सिर पकड़कर बैठ गये। उस दिन रोगीकी हालत अब-तब हो रही थी।
हमारी, मरीज़ाकी या छोटे-छोटे बच्चोंकी खुशकिस्मतीसे, उसी दिन हमारे पूज्यपाद माननीय वयोवृद्ध पण्डितवर कन्हैयालालजी वैद्य सिरसावाले, रोगिणीकी खबर पूछनेके लिये तशरीफ़ ले आये।
आप रोगिणीको देख-भालकर इस प्रकार कहने लगे-"बेशक मामला करारा है, ज्वर पुराना है, अतिसार भी साथ है, ज्वर धातुगत हो गया है, शरीरमें पहले ही बल और मांस नहीं है, फिर अभी १० दिनकी जच्चा होनेसे कमज़ोरी और भी बढ़ गई है। ईश्वर चाहता है, तो जमीनमें लिया हुआ मनुष्य भी बच जाता है, पर मुझे आपपर सख्त गुस्सा आता है। अफसोस है कि, आप आयुर्वेदमें इतनी गति रखकर भी, डाक्टरोंके जालमें बुरी तरह फंस रहे हो ! मालूम होता है,
आपके पास रुपया फालतू है, इसीसे निर्दयताके साथ उसे फेंक रहे हो । डाक्टर तो जवाब दे ही चुके । कहिये, और कोई नामी-ग्रामी डाक्टर बाकी है ? अगर है, तो उसे भी बुला लीजिये । मगर अब देर
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