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चिकित्सा-चन्द्रोदय । 'दिहातके लोग कहा करते हैं, यह अादमीको काटते ही पेशाब करता है । पत्थरपर मुंह मारकर आदमीपर झपटता है। कोई-कोई कहते हैं, जब इसे पेशाबकी हाजत होती है, तभी यह आदमीको काटता है।
चिकित्सा। - यद्यपि इसका काटा हुआ आदी नहीं बचता, तथापि काले साँप वगैरः घोर ज़हरवाले साँपोंकी तरह ही इसकी चिकित्सा करनी चाहिये।
कनखजूरेकी चिकित्सा।
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Xologen स्कृतमें कनखजूरेको शतपदी कहते हैं। इसके सौ स पाँव होते हैं, इसीसे “शतपदी" कहते हैं । “सुश्रुत" में
5 इसकी आठ किस्में लिखी हैं:-- (१) परुष, (२) कृष्ण, (३) चितकबरा, (४) कपिल रंगका, (५) पीला, (६ ) लाल, (७) सफेद, और (८) अग्निवर्णका । ___ इन आठोंमेंसे सफ़ेद और अग्निवर्ण या नारङ्गी रंगके कनखजूरे बड़े जहरीले होते हैं। इनके दंशसे सूजन, पीड़ा, दाह, हृदयमें जलन
और भारी मूर्छा,--ये विकार होते हैं। इन दोके सिवा,--बाक़ीके छहोंके डंक मारने या डसनेसे सूजन, दर्द और जलन होती है, पर हृदयमें दाह और मूर्छा नहीं होती। हाँ, सफेद और नारङ्गीके दंशसे बदनपर सफ़ेद-सफ़ेद फुन्सियाँ भी हो जाती हैं। ___ कदाचित् ये काटते भी हों, पर लोकमें तो इनका चिपट जाना मशहूर है । कनखजूरा जब शरीरमें चिपट जाता है, तब चिमटी वगैरहसे
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