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विशेष चिकित्सा।
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दीकर और राजिलकी अगद । ___ल्हिसौड़े, कायफल, बिजौरा नीबू, श्वेतस्पदा (श्वेतगिरिह्वा ), किणही (किणिही ) मिश्री और चौलाई-इनको मधुयुक्त गायके सींगमें भरकर, ऊपरसे सींगसे बन्दकर, १५ दिन रक्खो और काममें लाओ । इससे दर्बीकर और राजिलका विष शान्त हो जाता है।
मण्डली सर्पके विषकी अगद । मुनक्का, सुगन्धा (नाकुली), शल्लकी (नगवृत्ति)-इन तीनोंको पीसकर, इन तीनोंके समान मँजीठ मिला दो। फिर दो भाग तुलसीके पत्ते और कैथ, बेल, अनारके पत्तोंके भी दो-दो भाग मिला दो। फिर सफेद सँभालू , अङ्कोटकी जड़ और गेरू-ये आधे-आधे भाग मिला दो। अन्तमें सबमें शहद मिलाकर, सींगमें भर दो और सींगसे ही बन्द करके १५ दिन रख दो। इस अगदको घी, शहद और दूध वगैरःमें मिलाकर पिलाने, सुँघाने, घावपर लगाने और अञ्जन करनेसे मण्डली सर्पका विष विशेषकर नष्ट हो जाता है।
नोट--सुश्रुतमें अञ्जनको १ माशे, नस्यको २ माशे, पिलानेको ४ माशे और वमनको ७ माशे दवाकी मात्रा लिखी है।
सूचना-पीछे लिखे सर्प-विषनाशक नुसखोंमेंसे नं० ८ और नं० १५ मण्डली सर्पके विषपर अच्छे हैं।
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