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सर्प-विष-चिकित्सामें याद रखने योग्य बातें। १६७ भरी बोतलसे लगातार सेकनेसे जहरकी चाल धीमी हो जाती है। जरूरतके समय इस उपायसे भी काम लेना चाहिये।
() अगर साँपका विष बन्धोंको न माने, उन्हें लाँघकर ऊपर चढ़ता ही जाय; जलाने, खून निकालने आदिसे कोई लाभ न हो, तब जीवन-रक्षाका एक ही उपाय है । वह यह कि, जिस बन्ध तक ज़हर चढ़ा हो, उसके ऊपर, मोटे छुरेके पिछले भागसे, चीरकर
और आगसे जलाकर उस डसे हुए अवयवके चारों ओर, पाव इञ्च गहरा और गोल चीरा बना दो। इस तरह जलाकर, नसोंका सम्बन्ध या कनैक्शन तोड़ देनेसे, ज़हर चीरके खड्डेको लाँधकर ऊपर नहीं जा सकेगा। पर इतना खयाल रखना कि, ज्ञान-तन्तु न जल जाय, अन्यथा वे झूठे हो जायँगे --काम न देंगे । जब काम हो जाय, घावपर गिरीका तेल लगाओ। इसे "बैरीकी क्रिया” कहते हैं। इस उपायसे अवश्य जान बच सकती है।
(६) मरण-कालके उपाय-जब किसी उपायसे लाभ न हो, तब रोगीको खाटपर महीन रजाई या गद्दा बिछाकर, बड़े तकियेके सहारे बिठा दो और ये उपाय करोः--
(क) रोगीको सोने मत दो। उससे बातें करो।
(ख ) चारपाईके नीचे धूनी दो और खाटके नीचेकी धूनीवाली आगसे सेक भी करो । रोगीको खूब गर्म कपड़े उढ़ाकर, ऊपरसे सेक करो । इन उपायोंसे पसीना आवेगा । पसीनोंसे विष नष्ट होता है, अतः हर तरह पसीने निकालने चाहियें। रोगीको शीतल जल भूलकर भी न देना चाहिये।
(१०) रोगीको-साँपके काटे हुएको-घरके परनालेके नीचे बिठा दो। फिर उस परनालेसे सहन हो सके जैसा गरम जल खूब बहाओ । वह जल आकर ठीक रोगीके सिरपर पड़े, ऐसा प्रबन्ध करो। अगर १५-२० मिनटमें, रोगी काँपने लगे, उसे कुछ होश हो, तो यह काम करते रहो । जब होश हो जाय, उसे उठाकर और पोंछकर
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