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चिकित्सा-चन्द्रोदय । ज़हर निकल जाय । साँपके काटते ही डसी हुई जगहका खून बहाना और जहरको बन्धसे आगे न बढ़ने देना--ये दोनों उपाय परमोत्तम और जान बचानेवाले हैं।
(५) साँपकी डसी हुई जगहसे तीन-चार इंच या चार अंगुल ऊपर रस्सी आदिसे बन्ध बाँधकर, डसी हुई जगहको चीर दो और उसपर पिसा हुआ नमक बुरकते या मलते रहो । इस तरह करनेसे
खून बहता रहेगा और ज़हर निकल जायगा । बीच-बीचमें भी कई बार डसी हुई जगहको चीरो और उसपर गरम पानी डालो। इसके बाद नमक फिर बुरको । ऐसा करनेसे खूनका बहना बन्द न होगा । जबतक नीले रंगका खून निकले, तब तक जहर समझो। जब काला, पीला या सफ़ेद पानी-सा खून निकलना बन्द हो जाय और विशुद्ध लाल खून आने लगे, तब समझो कि अब जहर नहीं रहा । जब तक विशुद्ध लाल खून न देख लो, तब तक भूलकर भी बन्ध मत खोलना । अगर ऐसी भूल करोगे, तो सब किया-कराया मिट्टी हो जायगा । याद रखो, साँपका विष अत्यन्त कड़वा होता है । वह आदमी के खूनको प्रायः काला कर देता है । अगर मण्डली साँपका विष होता है, तो
खून पीला हो जाता है। इसीसे हमने लिखा है, कि जब तक काला, नीला, पीला या सफेद पानी-सा खून गिरता रहे, विष समझो और
खूनको बराबर निकालते रहो। सविष और निर्विष खूनकी परीक्षा इसी तरह होती है।
(६) अगर नसोंमें जहर चढ़ रहा हो, तो उन नसोंमें जिनमें जहर न चढ़ा हो अथवा जहरसे ऊपरकी नसोंमें जहाँ कि ज़हर चढ़कर जायगा, दो आड़े चीरे लगा दो । फिर नसके ऊपरी भागको-चीरेसे ऊपर--अँगूठेसे कसकर दबा लो । जब ज़हर चढ़कर वहाँ तक आवेगा, तब, उन चीरोंकी राहसे, खूनके साथ, बाहर निकल जायगा। यह बहुत ही अच्छा उपाय है।
(७) साँपकी डसी हुई जगहको रेतकी पोटली या गरम जलकी
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