________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सर्प-विष-चिकित्सामें याद रखने योग्य बातें।
१६३
नीला करता हुआ विष-मिला खून चढ़ा या नहीं या कहाँ तक चढ़ा,यह बात बालोंसे साफ जानी जा सकती है। अगर इन परीक्षाओंसे भी आपको सन्देह रहे, तो आप निकलते हुए .खूनको आगपर डाल देखें। अगर खूनमें जहर होगा और खून बदबूदार होगा, तो आगपर डालते ही वह चटचट करेगा। कहा है:
दुर्गन्धं सविषं रक्कमग्नौं चटचटायते । अगर आपका बाँधा हुआ बन्ध ठीक हो, तब तो कोई बात ही नहीं-नहीं तो फौरन दूसरा बन्ध उससे ऊपर, जहाँ विष न हो, बाँध दो। बन्ध बाँधनेका यही मतलब है कि, जहर खून में मिलकर ऊपर न चढ़ सके, अतः बन्धको ढीला हरगिज़ मत रखना । बन्ध बाँधकर, बन्धके नीचे चीरा देना भी न भूलना । बन्ध बाँधते ही जहर पीछेकी तरफ बड़े जोरसे लौटता है । अगर आप पहले ही चीर देंगे, तो जोरसे लौटा हुआ जहर खूनके साथ बाहर निकल जायगा।
(२) अगर साँपकी काटी जगह बन्ध बाँधने-लायक न हो, तो नसमें जहर घुसनेसे पहले, फौरन ही, काटी हुई जगहपर जलते हुए अङ्गारे रखकर जहरको जला दो। अथवा काटी हुई जगहको छुरीसे छीलकर, लोहेकी गरम शलाकासे दाग दो-जला दो। अगर यह काम, बिना क्षणभरकी भी देरके, उचित समयपर किया जाय, तब तो कहना ही क्या ? क्योंकि ऐसी क्या चीज़ है, जो आगसे भस्म न हो जाय ? वाग्भट्टने कहा है:
दंशं मण्डलिनां मुक्त्वा पित्तलत्वादथापरम् । प्रतप्तहेमलोहाद्यैर्दहेदाशूल्मुकेन वा।
करोति भस्मसात्सद्योवहिनः किं नाम न क्षणात् ॥ अगर मण्डली साँपने काटा हो, तो भूलकर भी मत दागना; क्योंकि मण्डली साँपके विषकी प्रकृति पित्तकी होती है; अतः
For Private and Personal Use Only