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( १ ) भोगी
( २ ) मण्डली
( ३ ) राजिल
( ४ ) दोगले
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चिकित्सा चन्द्रोदय ।
• बङ्गसेनने चार और वाग्भट्टने तीन विभाग किये हैं। ये विभाग, चिकित्सा के. सुभीते के लिये, वातादिक दोषोंके हिसाबसे किये हैं । जिस तरह दोष तीन होते हैं, उसी तरह साँपोंकी प्रकृति भी तीन होती हैं । वात प्रकृतिवाले, पित्त प्रकृतिवाले, कफ प्रकृतिवाले और मिली हुई प्रकृतिवाले — इस तरह चार प्रकृतियोंवाले साँप होते हैं । जिसकी जैसी प्रकृति होती है, उसके विषका प्रभाव भी काटने वालेपर वैसा हो होता है । जैसे, अगर वात प्रकृतिवाला साँप काटता है, तो काटे जानेवाले आदमी में वायुका प्रकोप होता है; यानी विष चढ़ने में वायु-कोपके लक्षण नज़र आते हैं। अगर पित्त प्रकृतिवाला काटता है, तो पित्तकोपके; कफ प्रकृतिवाला काटता है, तो कफ-कोपके और मिली हुई प्रकृतिवाला काटता है, तो दो दोषोंके कोपके लक्षण दृष्टिगत होते हैं। चारों तरहके साँपोंकी चार प्रकृतियाँ इस तरह होती हैं:
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वात प्रकृति ।
पित्त प्रकृति |
... कफ प्रकृति ।
4.
द्वन्द्वज प्रकृति |
सूचना — गारुड़ो ग्रन्थोंमें साँपोंकी है जाति लिखी हैं -- फणीधर, मणीधर, पत्तरा, भोंकोडीचा, जलसाँप, गड़ीबा, चित्रा, कालानाग और कन्ता ।
साँपों की पहचान | भोगी ।
( १ ) भोगी या फनवाले -- इन साँपोंको " दर्बीकर" भी कहते हैं । इनके तरह-तरह के आकारोंके फन होते हैं, इसीलिये इन्हें फनवाले साँप कहते हैं । ये बड़ी तेज़ी से खूब जल्दी-जल्दी चलते हैं । इनकी प्रकृति वायुप्रधान होती है, इसलिये इनके विषमें भी वायुकी प्रधानता होती है। ये जिस मनुष्यको काटते हैं, उसमें वायुके प्रकोपके विशेष लक्षण देखने में आते हैं। इनका विष रूखा होता है । रूखापन वायुका गुण है। काले साँप, घोर काले साँप और काले पेटवाले साँप इन्हीं में होते हैं । इनकी मुख्य पहचान दो हैं: -- ( १ ) फन और (२) जल्दी चलना ।
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