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जंगम विष-चिकित्सा ।
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___ चलने-फिरनेवाले साँप-बिच्छू, कनखजूरे, मैंडक, मकड़ी, छिपकली प्रभृतिके विषको “जंगम विष" कहते हैं।
पहला अध्याय ।
सर्प-विष चिकित्सा।
साँपोंके दो भेद से तो साँपोंके बहुतसे भेद हैं, पर मुख्यतया साँप दो Dirone तरहके होते हैं:-(१) दिव्य और (२) पार्थिव ।
दिव्य सोके लक्षण । वासुकि और तक्षक आदि दिव्य सर्प कहलाते हैं। ये असंख्य प्रकारके होते हैं। ये बड़े तेजस्वी, पृथ्वीको धारण करनेवाले और नागोंके राजा हैं। ये निरन्तर गरजने, विष बरसाने और जगत्को सन्तापित करनेवाले हैं। इन्होंने यह पृथ्वी, मय समुद्र और द्वीपोंके, धारण कर रखी है। ये अपनी दृष्टि और साँससे ही जगत्को भस्म कर सकते हैं।
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