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शत्रुओं द्वारा दिये हुए विषकी चिकित्सा ।
चिकित्सा। (१) वही इलाज करो जो पृष्ठ १५४ में विष-मिले मालिश करानेके तेलमें लिखा गया है । जानवरोंका भी वही इलाज करना चाहिये। . नोट--"चरक"में लिखा है, राजाके फिरनेकी जगह, खड़ाऊँ, जूते, घोड़ा, हाथी, पलङ्ग, सिंहासन या मेज़ कुरसी आदिमें विष लगा होता है, तो उनके काममें लानेसे सुइयाँ चुभानेकी-सी पीड़ा, दाह, क्लम और अविपाक होता है।
=========== ===== I नस्य, हक्का, तम्बाकू और फूलोंमें विष ।
अगर नस्य या तम्बाकू प्रभृतिमें विष होता है, तो उनको काममें लानेसे मुंह, नाक, कान आदि छेदोंसे खून गिरता है, सिरमें पीड़ा होती है, कफ गिरता है और आँख, कान आदि इन्द्रियाँ खराब हो जाती हैं।
चिकित्सा । (१) पानीके साथ अतीसको पीसकर लुगदी बना लो। लुगदीसे चौगुना घी लो और घीसे चौगुना गायका दूध लो। सबको मिलाकर, आगपर पकाओ और घी-मात्र रहनेपर उतार लो। इस घीके पिलानेसे ऊपर लिखे रोग नाश हो जाते हैं।
(२) घीमें बच और मल्लिका--मोतिया मिलाकर नस्य दो ।
अगर फूलों या फूलमालाओंमें विष होता है, तो उनकी सुगन्ध मारी जाती है, रंग बिगड़ जाता है और वे कुम्हलाये-से हो जाते हैं। उनके सूं घनेसे सिरमें दर्द होता और नेत्रोंसे आँसू गिरते हैं।
चिकित्सा। (१) मुखलेप-गत विषमें--पृष्ठ १५६ में-जो चिकित्सा लिखी है, वही करो अथवा पृष्ठ १४८ में गन्ध या भाफके विषका जो इलाज लिखा है, वह करो।
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