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[ ख ] रोगोंकी शिकार हो रही हैं। अनेकों स्त्रियोंको मासिक-धर्म समयपर और ठीक नहीं होता, अनेक रमणियाँ गर्भाशयमें दोष हो जानेसे सन्तानके लिये तरसती और ठगोंको ठगाकर घरका धन और इज्जतहुर्मत नष्ट करती हैं और अनेकों स्त्रियाँ प्रदर आदि रोगोंसे ग्रसित होने और आयुर्वेदके नियम न पालनेकी वजहसे क्षय-रोगके फन्देमें फँसकर छोटी उम्र में ही परमधामकी यात्रा करती हैं। __ यद्यपि इस भागमें स्थावर-जंगम विष-चिकित्सा और स्त्री-रोग चिकित्सा लिखनेसे हमारा क्रम बिगड़ता था, पर हमें ग्राहकोंकी सलाह पसन्द आगई। मनमें सोचा, जिन्दगीका भरोसा नहीं, आज है कल न रहे । श्वास, खाँसी, वातरोग आदिककी चिकित्साके लिए तो बहुतसे वैद्य-डाक्टर मिल जायँगे; पर सर्प आदिसे जान बचानेके लिए ग़रीबोंको सवैद्य कहाँ मिलेंगे ? ग़रीब ग्रामीणोंकी स्त्रियाँ जो प्रदर आदि रोगों और यक्ष्मा या क्षय आदिसे असमय या भर-जवानीमें ही मर जाती हैं, अपनी निर्धनताके मारे किन वैद्य-डाक्टरोंसे इलाज कराकर जान बचायेंगी ? अतः इन्हीं रोगोंपर लिखना उचित होगा। . हमने इस भागके तीन खण्ड किये हैं। पहले खण्डमें “स्थावर विष-चिकित्सा" लिखी है। दूसरे खण्डमें "जंगम विष-चिकित्सा" लिखी है। उसमें अफीम, संखिया आदि नाना प्रकारके विषोंके नाश करनेकी तरकीबें मय उनकी पहचान आदिके लिखी गई हैं और इसमें सर्प, बिच्छू, कनखजूरे, मैंडक, छिपकली, बर्र, ततैया, मक्खी, मच्छर आदि प्रायः सभी जहरीले जीवोंके काटनेकी चिकित्सा लिखी है। जो लोग थोड़ी भी हिन्दी जानते होंगे, वे इन खण्डोंको पढ़-समझकर अनेकों प्राणियोंको अकाल मृत्युसे बचा सकेंगे। अगर प्रत्येक गाँवमें इस भागकी एक-एक प्रति भी होगी, तो बहुतोंकी जीवन-रक्षा होगी। हमने विष-चिकित्सापर समस्त प्राचीन और अर्वाचीन ग्रन्थोंको मथकर, कौड़ियोंमें तैयार होनेवाले और समय
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