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विष-उपविषांकी विशेष चिकित्सा-"कुचला"।
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भागके पृष्ठ ५७६-७७ में देखिये । पारा, गन्धक, कुचला और बच्छनाभ विष भूलकर भी बिना शोधे दवामें मत डालना ।
(४) बलाबल-अनुसार, एकसे ६ रत्ती तक कुचला पानीमें डालकर औटाओ और छान लो। इस जलके पीनेसे भोजन अच्छी तरह पचता है । अगर अजीर्णसे बीच-बीच में क़य होती हों, तो यही पानी दो। अगर वात प्रकृतिवालोंको वात-विकारोंसे तकलीफ़ रहती हो, तो उन्हें यही कुचलेका पानी पिलाओ। कुचलेसे वात-विकार फौरन दब जाते हैं। वात-प्रकृतिवालोंको कुचला अमृत है। जिन अफीम खानेवालोंके पैरोंमें थकान या भड़कन रहती हो, वे इस पानीको पिया करें, तो सब तकलीफें रफ़ा होकर आनन्द आवे । इन सब शिकायतोंके अलावा कुचलेके पानीसे मन्दाग्नि, अरुचि, पेटकी मरोड़ी और पेचिश भी आराम होती है । __नोट--शौक़में श्राकर कुचला ज़ियादा न लेना चाहिये । अगर कुचला खाकर गरम पानी पीना हो, तो दो-तीन चाँवल-भर शुद्ध कुचला खाना चाहिये और ऊपरसे गरम पानी पीना चाहिये । अगर प्रौटाकर पीना हो, तो बलाबल-अनुसार एकसे ६ रत्ती तक पानीमें डालकर प्रौटाना और छानकर पानी-मान पीना चाहिए।
(५) कुचलेको पानीके साथ पीसकर मुंहपर लगानेसे मुंहकी श्यामता-कलाई और व्यंग आराम होती है। गीली खुजली और दादोंपर इसका लेप करनेसे वे भी आराम हो जाते हैं।
(६) कुचलेकी उचित मात्रा खाने और ऊपरसे गरम जल पीनेसे पक्षवध, स्तंभ, आमवात, कमरका दर्द, अकुलनिसाँ- चूतड़से पैरकी अँगुली तककी पीड़ा- और वायु-गोला-ये सब रोग आराम होते हैं। स्नायुके समस्त रोगोंपर तो यह रामवाण है। यह पथरीको फोड़ता, पेशाब लाता और बन्द रजोधर्मको जारी करता है।
नोट-हिकमतकी पुस्तकोंमें नं. ६ के गुण लिखे हैं । मात्रा २ रत्तीकी लिखी है। यह भी लिखा है कि, घी और मिश्री पिलाने और कय करानेसे इसका दर्प नाश हो जाता है । यह तीसरे दर्जेका गरम, रूखा, नशा लानेवाला और घातक विष है। स्वादमें कड़वा है। कुचलेका तेल लगाकर और कुचला खिलाकर,
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