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विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा-"अफ़ीम"। १२७ पंख फेरकर वमन कराओ । (ख) २० ग्रेन सलफेट आफ जिंक थोड़ेसे जलमें घोलकर पिलाओ । (ग) राईका चूर्ण एक या दो चम्मच पानीमें मिलाकर पिलाओ । (घ) इपिकाकुआनाका पौडर १५ ग्रेन थोड़ेसे पानीमें मिलाकर पिलाओ । ये सब वमन करानेकी दवाएँ हैं । इनमेंसे किसी एकको काममें लाओ। अगर वमन जल्दी और ज़ोरसे न हो, तो गरम जल खूब पिलाओ या नमक मिलाकर जल पिलाओ। वमनकी दवापर नमकका पानी या गरम पानी पिलानेसे बड़ी मदद मिलती है; वमनकारक दवाका बल बढ़ जाता है। यह कय करनेकी बात हुई। .
घी पिलाओ। घी विष-नाश करनेका सर्वश्रेष्ठ उपाय है । घीमें यह गुण है कि, वह क़यमें जहरको साथ लिपटाकर बाहर ले आता है।
जब अफीमका विष शरीरमें फैल जाय, तब वमन करानेसे उतना लाभ नहीं। उस समय अफीमका विष नाश करनेवाली और अफीमके गुणके विपरीत गुणवाली दवाएँ दो । जैसे:
(क) रोगीको सोने मत दो--उसे जागता रखो। सिरपर शीतल जलकी धारा छोड़ो । रोगीको धमकाओ, चिल्लाकर जगाओ और चूँ टीसे काटो। मतलब यह है, उसे तन्द्रा या ऊँघ मत आने दो, क्योंकि सोने देना बहुत ही बुरा है।
(ख) वमन होनेके बाद, .पन्द्रह-पन्द्रह मिनटमें कड़ी काफी पिलाओ । उसके अभावमें चाय पिलाओ । इससे नींद नहीं आती।
(ग) अगर नाड़ी बैठ जाय, तो लाइकर एमोनिया १० बूंद अथवा स्पिरिट एरोमेटिक ३० से ४० बूंद थोड़े-से जलमें मिलाकर पिलाओ।
(घ) चल सके तो थोड़ी-थोड़ी ब्राण्डी पानीमें मिलाकर पिलाओ और दोनों पैरोंपर गरम बोतल फेरो।
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